नई दिल्ली। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के बीच स्थिति सामान्य नहीं है। दोनों देश के सैनिकों के बीच बीते कुछ समय में तनाव काफी बढ़ गया है। झड़प की खबरें भी आती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किला से दिए अपने भाषण में चीन को संदेश दे चुके हैं कि विस्तारवाद की उसकी नीति अब नहीं चलने वाली है। इतना ही नहीं, चीन ने भारत के साथ-साथ अमेरिका जैसे ताकतवर देशों को भी अपना दुश्मन बना लिया है। दक्षिण चीन सागर में दोनों देशों के बीच गतिरोध साफ देखी जा सकती है। ऐसे में अगर चीन, भारत के साथ युद्ध में जाने की कोशिश करता है तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। चीन अपनी विस्तारवाद नीति के कारण अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, आस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों का भी दुश्मन बन गया है। ऐसी परिस्थिति में अगर युद्ध छेड़ता है तो इस बात की संभावना है कि भारत को इन देशों का समर्थन मिल सकता है। पीएम मोदी की नई विदेश नीति के कारण इन देशों के साथ भारत के हालिया संबंध प्रगाढ़ हुए है।
चीनी सैनिक और वहां के सत्ता रूढ़ नेता अक्सर 1962 की लड़ाई का जिक्र करते हैं, लेकिन अब पड़ोसी देश को समझना होगा कि परिस्थिति काफी हद तक बदल चुकी है। भारत ने अपने रक्षा बजट पर भारी-भरकम खर्च किए हैं। फ्रांस के साथ राफेल की डील हुई है तो इजरायल से भी बड़े पैमाने पर आधुनिक हथियार की खरीद की गई है। ऐसे रक्षा समझौतों से भारतीय सेना को काफी बल मिला है। यही वजह है कि 2017 में डोकलाम में चीनी सेना को अपने कदम वापस खींचने पड़े थे। इतना ही नहीं , गालवान घाटी में भी भारतीय जवानों ने चीन के 40 से अधिक सैनिकों को मार गिराया। हालांकि इस झड़प में भारत के भी 20 सैनिक शहीद हुए थे। पूर्वी लद्दाख में एलओसी पर 29 अगस्त की रात हुई चीनी सैनिकों की घुसपैठ की कोशिश को नाकाम करने के साथ ही भारतीय सेना ने पैंगोंग झील के दक्षिणी इलाकों को पूरी तरह से चीनी सेना से मुक्त करा लिया है। इसके साथ ही पैंगोंग झील क्षेत्र में तैनाती बढ़ा दिख रहा है। चीन को अब ये देखना चाहिए की वो किस्से पंगा लेने की सोच रही है।