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Thursday, November 21, 2024

Mahashivratri 2021: महाशिवरात्रि के दिन शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

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Mahashivratri 2021: फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का व्रत किया जाता है। आचार्य के अनुसार चतुर्दशी तिथि 12 मार्च दोपहर 3 बजकर 3 मिनट तक ही रहेगी। इस बार चतुर्दशी तिथि में रात्रि का समय 11 मार्च ही रहेगा और शिवरात्रि में रात के समय चतुर्दशी तिथि का अधिक महत्व है । क्योंकि शिवरात्रि का अर्थ ही है शिव की रात्रि और चतुर्दशी तिथि पूरी रात रहेगी । लिहाजा महाशिवरात्रि का व्रत 11 मार्च को किया जाएगा। इस दिन भगवान शिव की पूजा से व्यक्ति को विशेष फलों की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि को लग रहे हैं दुर्लभ योग 11 मार्च सुबह 9 बजकर 24 मिनट तक शिव योग रहेगा।  उसके बाद सिद्ध योग लग जायेगा। जोकि 12 मार्च सुबह 8 बजकर 29 मिनट तक रहेगा। शिव योग में किए गए सभी मंत्र शुभफलदायक होते हैं | इसके साथ ही रात 9 बजकर 45 मिनट तक धनिष्ठा नक्षत्र रहेगा

महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त

महाशिवरात्रि तिथि- 11 मार्च 2021 महानिशीथ काल – 11 मर्च रात 11 बजकर 44 मिनट से रात 12 बजकर 33 मिनट तक निशीथ काल पूजा मुहूर्त :  11 मार्च देर रात 12 बजकर 06 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक अवधि-48 मिनट महाशिवरात्रि पारण मुहूर्त :  12 मार्च सुबह 6 बजकर 36 मिनट 6 सेकंड से दोपहर 3 बजकर 4 मिनट 32 सेकंड तक। चतुर्दशी  तिथि शुरू: 11 मार्च को दोपहर 2 बजकर 39 मिनट से चतुर्दशी तिथि समाप्त: 12 मार्च दोपहर 3 बजकर 3  मिनट

महाशिवरात्रि की पूजा विधि

आचार्य के अनुसार शिवरात्रि के दिन सबसे पहले शिवलिंग में चन्दन के लेप लगाकर पंचामृत से स्नान कराना चाहिए। इसके बाद ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करना चाहिए। साथ ही शिव पूजा के बाद गोबर के उपलों की अग्नि जलाकर तिल, चावल और घी की मिश्रित आहुति देनी चाहिए। इस तरह होम के बाद किसी भी एक साबुत फल की आहुति दें। सामान्यतया लोग सूखे नारियल की आहुति देते हैं। व्यक्ति यह व्रत करके, ब्राह्मणों को खाना खिलाकर और दीपदान करके स्वर्ग को प्राप्त कर सकता है। आचार्य के अनुसार शिवरात्रि की पूजा विधि के विषय में भी अलग-अलग मत हैं- सनातन धर्म के अनुसार शिवलिंग स्नान के लिये रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घृत और चौथे प्रहर में मधु, यानी शहद से स्नान करना चाहिए। चारों प्रहर में शिवलिंग स्नान के लिये मंत्र भी हैं प्रथम प्रहर में- ‘ह्रीं ईशानाय नमः’ दूसरे प्रहर में- ‘ह्रीं अघोराय नमः’ तीसरे प्रहर में- ‘ह्रीं वामदेवाय नमः’ चौथे प्रहर में- ‘ह्रीं सद्योजाताय नमः’।। मंत्र का जाप करना चाहिए। वहीं वर्ष क्रिया कौमुदी के पृष्ठ 513 में आया है कि दूसरे, तीसरे और चौथे प्रहर में व्रती को पूजा, अर्घ्य, जप और कथा सुननी चाहिए, स्तोत्र पाठ करना चाहिए। साथ ही प्रातःकाल अर्घ्यजल के साथ क्षमा मांगनी चाहिए, लेकिन व्यक्तिगत रूप से मेरा विश्वास क्षमा मांगने में नहीं है क्योंकि क्षमा तो दूसरों से मांगी जाती है। मैंने तो खुद को शिव जी को अर्पित कर दिया है- अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेनिद्रियाणाम्। सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्।। अर्थात् “मैं समस्त संदेहों से परे, बिना किसी आकार वाला, सर्वगत, सर्वव्यापक, सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित हूं, मैं सदैव समता में स्थित हूं, न मुझमें मुक्ति है और न बंधन, मैं चैतन्य रूप हूं, आनंद हूं, शिव हूं, शिव हूं”।। महाशिवरात्रि व्रत के पारण धर्मसिन्धु के पृष्ठ 126 के अनुसार- यदि चतुर्दशी तिथि रात्रि के तीनों प्रहरों के पूर्व ही समाप्त हो जाये तो पारण तिथि के अंत में करना चाहिए और यदि वह तीनों प्रहरों से आगे चली जाये तो उसके बीच में ही सूर्योदय के समय पारण करना चाहिए, जबकि निर्णयसिन्धु के अनुसार यदि चतुर्दशी तिथि रात्रि के तीन प्रहरों के पूर्व समाप्त हो जाये तो पारण चतुर्दशी के बीच में ही होना चाहिए, न कि उसके अंत में। महाशिवरात्रि को लेकर है ये मान्यताएं आचार्य के मुताबिक, माना जाता है कि आज के दिन से ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ था। वहीं ईशान संहिता में बताया गया है कि- फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्याम आदिदेवो महानिशि। शिवलिंग तयोद्भूत: कोटि सूर्य समप्रभ:॥ फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महानिशीथकाल में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए थे। जबकि कई मान्यताओं में माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ है। गरुड़ पुराण, स्कन्द पुराण, पद्मपुराण और अग्निपुराण आदि में शिवरात्रि का वर्णन मिलता है। कहते हैं शिवरात्रि के दिन जो व्यक्ति बिल्व पत्तियों से शिव जी की पूजा करता है और रात के समय जागकर भगवान के मंत्रों का जाप करता है, उसे भगवान शिव आनन्द और मोक्ष प्रदान करते हैं

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