जबलपुर | मध्य प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों को लेकर हाईकोर्ट ( High Court ) ने तल्ख टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान में आर्टिकल 21 के तहत प्रदत्त राइट टू लिव का अधिकार तब तक अर्थहीन है जब तक लोगों को ऑक्सीजन उपलब्ध न हो. यह तल्ख टिप्पणी हाईकोर्ट ने कोरोना आपदा को लेकर दर्ज की गई स्वत: संज्ञान वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दी है. कोरोना आपदा को लेकर हाईकोर्ट लगातार सुनवाई कर रहा है. स्वत: संज्ञान समेत अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कल महत्वपूर्ण आदेश सुरक्षित रखा गया था जिसे शनिवार को जारी कर दिया गया
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि कोरोना आपदा की जो स्थिति सरकार अदालत को बतला रही है वह हकीकत से अलग है. ऑक्सीजन को लेकर सरकार का जवाब और जो जमीनी हकीकत है उसमें भी बड़ा अंतर है. कड़ी फटकार के साथ हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि समाचार पत्रों की खबरों के माध्यम से यह जानकारी भी मिली है कि 2 अप्रैल से लेकर 28 अप्रैल तक 90 मरीजों ने ऑक्सीजन की कमी के चलते अपनी जान गवां दी है. बहरहाल यह जानकारी कितनी स्पष्ट है यह जांच का विषय है, लेकिन फिर भी ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की मौत होना दिल दहला देने वाली घटना है
22 पन्नों के अपने आदेश में हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जीने के अधिकार में स्वास्थ्य का अधिकार भी निहित होता है. आर्टिकल 21 के तहत जीने का अधिकार तब तक अर्थहीन जब तक ऑक्सीजन उपलब्ध न हो. मामले में महाधिवक्ता द्वारा सरकार का ऑक्सीजन की आपूर्ति को लेकर विस्तृत पक्ष रखा गया जिसके बाद हाईकोर्ट ने अपने मत में कहा कि सरकार ऑक्सीजन की आपूर्ति को लेकर काम कर रही है