भोपाल :- मध्य प्रदेश की सियासत में ‘ऑल इज नॉट वेल’। बीजेपी हो या कांग्रेस, दोनों ही पार्टियों के अंदर गुटबाजी चरम पर है। गुटबाजी के कारण कमलनाथ की सरकार गिरी और शिवराज सिंह की बनी। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के कांग्रेस छोडने के कारण ही मध्य प्रदेश में बीजेपी सत्ता में आई हैं।
ऐसे में शिवराज सरकार में सिंधिया का दबदबा है। कैबिनेट विस्तार से लेकर विभागों के बंटवारे तक में ज्योतिरादित्य सिंधिया का दबादबा रहा है। शिवराज कैबिनेट में सिंधिया खेमे की हिस्सेदारी लगभग 41 फीसदी है। ऐसे में सिंधिया का दखल सरकार में हमेशा रहेगा।
वहीं, अगर वर्तमान सियासी समीकरण को देख जाए तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बीजेपी ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव को कम करने के प्लान पर काम कर रही है, ताकि समय रहते सिंधिया को साइलेंट किया जाए। इसके लिए लगातार बीजेपी काम भी कर रही है।
दरअसल, बीजेपी को सत्ता में बने रहने के लिए 9 सीटों की आवश्यकता है। फिलहाल बीजेपी के पास 107 विधायक हैं। अभी बीजेपी को 9 विधायकों की आवश्यकता है। मध्य प्रदेश में 26 सीटों पर उपचुनाव होना है। 26 में से 22 वो सीट है, जहां से सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हुए हैं लेकिन इन 22 में 3 ऐसे विधायक हैं, जो सिंधिया गुट के नहीं है। हाल ही में दो और कांग्रेस विधायक इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हुए हैं।
यानी की 7 ऐसे सीट हैं, जिनका सिंधिया गुट से कोई संबंध नहीं है। अब बीजेपी को बहुमत के लिए दो सीटों की जरूरत पड़ेगी। यही कारण है कि सुमित्रा कास्डेकर के पार्टी में शामिल होने के बाद बीजेपी लगातार दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस के 4 से 5 विधायक पार्टी छोड़ सकते हैं। इससे साफ है कि बीजेपी चाहती है कि किसी तरह वह उस आंकड़ा का पा ले, जिसकी उसे जरूरत है।
सिंधिया को साइलेंट करना चाहती है बीजेपी?
दरअसल, बीजेपी सिंधिया के प्रभाव को कम करना चाहती है। यही कारण है कि वह उपचुनाव से पहले कांग्रेस विधायकों को तोड़ रही है। बीजेपी की कोशिश है कि होने वाले उपचुनाव में 9 गैर सिंधिया समर्थकों की जीत पक्की हो। अगर ऐसा हो गया तो बीजेपी खुद के बल पर सत्ता में आ जाएगी।