ग्वालियर। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने जहां दवा कंपनियों को भारी मुनाफा पहुंचाया है,तो वही दवा कंपनियों के प्रतिनिधि फांके काटने के लिए मजबूर है। पिछले डेढ़ महीने में ही दवा कंपनियों ने तकरीबन 100 करोड़ रुपए का कारोबार किया है। आमतौर पर इसी अवधि में करीब 30 करोड़ का दवा कारोबार होता था। लेकिन इस बार की कोरोना लहर ने चिकित्सकों के साथ ही निजी नर्सिंग होम, दवा कारोबारियो की चांदी कर दी है। पिछले साल जहां दवा कंपनियों का बाजार 30 से 40 रसीद के बीच रहा था वह बढ़कर इस बार 70 फ़ीसदी तक पहुंच गया है ऐसे में ज्यादा मेहनत के ही आर्डर बढ़ रहे हैं और लोग दवाइयों के लिए जुगत लगा रहे हैं। ऐसेेे हालात में एमआर के ऊपर दवाई कंपनियों की ओर से नौकरी से छटनी की तलवार लटक रही है।
दवाइयों के दाम किए महंगे…
खास बात यह है ,कि मुंह मांगे दाम चुकाने के बावजूद कई जीवन रक्षक दवाएं बाजार से गायब है और कंपनियां मंहगे दामों पर इन दवाओं को बेच रही है ।एक साधारण सी लिम्सी टेबलेट जो 80 पैसे में आती थी वह 4 रुपये खर्च करने के बाद भी बाजार में उपलब्ध नहीं है। सरकार ने दवा कारोबार से अपनी आंखें मूंद ली है। जिसका खामियाजा संक्रमित मरीज और उनके परिवारों को आर्थिक बोझ के रूप में भुगतना पड़ रहा है। शहर में साढे़ तीन सौ से ज्यादा छोटे बड़े दवा कारोबारी है।
दवाइयों की मांग बढ़ने से लटकी तलवार…
एक महीने में जहां सभी दवा कारोबारी के यहां से लगभग 30 करोड़ की दवाएं बिकती थी, लेकिन पिछले साल से सैनिटाइजर एवं मास्क का बाजार छाया रहा। अब पल्स ऑक्सीमीटर, ऑक्सीजन फ्लोमीटर और मास्क की बिक्री हो रही है। कोरोना काल में खांसी बुखार के अलावा विटामिन, एंटीबायोटिक दवाओं की खपत सबसे ज्यादा हुई है। पेरासिटामोल ,मल्टीविटामिन, लिम्सी, जिंकोविट टेबलेट के साथ सेफ्ट्राएक्शन, सेलबेक्डम, मेरोपेनेम इंजेक्शन सहित कई दवाओं की खपत बाजार में रही है। लेकिन भरपूर कारोबार के बावजूद दवा कंपनियों के प्रतिनिधि परेशान हैं। उनका कहना है ,कि ग्वालियर में कार्यरत 800 से ज्यादा दवा प्रतिनिधि अपनी नौकरी बचाने की जुगत में जुटे हुए हैं कई लोगों को नौकरी से बाहर कर दिया गया है। जबकि करीब 2 सैकड़ा दवा प्रतिनिधियों पर नौकरी की तलवार लटक रही है। सरकार का उनकी समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं है।