ग्वालियर। कोरोना के संक्रमण में पहले टीके के लिए दुआएं की जा रही थीं, जब टीका आया तो लोग लगवाने को राजी नहीं थे। अब जब टीकाकरण के लिए माहौल बन गया तो सरकार की ओर से वैक्सीन ही नहीं मिल पा रही है। कोरोना से जंग जीतने के लिए टीका लगवाने के लिए मुनादी कराने वाली सरकारी मशीनरी को भी पता है कि टीका नहीं है, लेकिन क्या करें,डयूटी है। अब जिले के वरिष्ठ अफसरों के लिए यह सबसे बड़ी चिंता होना चाहिए कि उनके जिले के लिए ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन कैसे आए। हाथ पर हाथ धरने से काम नहीं चलेगा, क्योंकि जनता अब टीका लगवाने के मूड में है और अब टीका नहीं मिला तो आगे इस अभियान को चलाना मुश्किल हो जाएगा। बाजार से लेकर बस्तियों में पहले टीका तब दूसरा कोई काम तर्ज पर काम हो रहा है तो टीका भी मंगवाइए।
आपदा प्रबंधन समूह में शामिल होने वाले हर सदस्य को जिम्मा दिया गया था कि मैदानी स्तर पर चाहे कोविड गाइडलाइन की बात हो या टीकाकरण अभियान को तेजी देने की, अब सरकारी अफसरों के साथ आपदा प्रबंधन के सदस्य भी जाएंगे। भोपाल स्तर तक से यह आदेश दिए गए थे कि गांव हो या शहर कहीं भी जाएं तो आपदा प्रबंधन समूह के सदस्यों को भी साथ ले जाएं। हकीकत में आपदा प्रबंधन समूह के अधिकतर सदस्यों को तो अपने नाम से मतलब रह गया है। इंटरनेट मीडिया तक सब समेट दिया, लेकिन शहर हो या बाजार कोई नहीं उतरा। हर बैठक में कलेक्टर और सांसद की अपील भी यही रहती है कि आपदा प्रबंधन के सदस्य कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग करें तभी कोरोना महामारी को हराया जा सकता है। हर बार अपील निर्देश, लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया।
कोरोना का संक्रमण घटने के बाद अब लापरवाही भी अनलाक हो गई है। अब तो दाएं बाएं भी खत्म हो गया है इसलिए और चिंता की बात है। इंसीडेंट कमांडरों से लेकर पुलिस की व्यवस्था जो बाजारों में भीड़ नियंत्रण के लिए थी वह गायब हो गई है। बाजारों में भीड़ उमड़ रही है और सड़कों पर भी यही हाल है। सुबह से लेकर अब शाम पांच बजे तक जैसे भीड़ जुटने का लाइसेंस सा मिल गया है। ऐसी लापरवाही नहीं होना चाहिए। इसलिए जरूरी है कि कोरोना गाइडलाइन के पालन के लिए पुलिस और जिला प्रशासन पहले की तरह मुस्तैदी से निगरानी करें। समय कम ज्यादा किया जा सकता है वो अलग है, लेकिन पूरी तरह निगरानी छोड़ देना ठीक नहीं है। लापरवाही पूरी तरह अनलाक नहीं होना चाहिए। बाजारों में ट्रायल बतौर यह खोला गया है, लेकिन भीड़ है। कोरोना अभी टला नहीं है।
कोरोना संक्रमण घटने के बाद अब कामों की पेंडेंसी के ढ़ेर लगे हैं। सब खुल गया है, लेकिन जनता की सुनवाई के रास्ते अभी भी नहीं खुले हैं। अपनी हर छोटी बड़ी समस्या के लिए लोग चक्कर लगा रहे हैं। खुद सीएम हेल्पलाइन के आंकड़े अभी तक भरमार हैं। सबसे ज्यादा समस्या जमीन संबंधी हैं जिनको लेकर पटवारी स्तर से लेकर कलेक्ट्रेट तक लोग परेशान हैं। कोरोना संक्रमण काल में सब बंद था तो समस्याओं के लिए लोग घरों से नहीं निकल पाए। जमीनों की समस्याएं इस दौरान भी ज्यादा बढ़ीं क्योंकि अफसर कोरोना नियंत्रण में लगे रहे तो कोई देखने वाला भी नहीं था। अब सुनवाई का समय है और लोग अपनी समस्याओं को लिए खड़े हैं। जनसुनवाई तो बंद चल रही है, लेकिन अफसरों को अब अपने चैंबरों में सुनवाई बढ़ा देना चाहिए। कोविड में अभी राहत है तो सुनवाई के लिए समय है।