डर गए थे मेजर ध्यानचंद
इस किताब के अनुसार, बर्लिन ओलंपिक में हॉकी का फाइनल देखने के लिए 40 हजार से ज्यादा की भीड़ स्टेडियम में मौजूद थी. साथ ही एडोल्फ हिटलर के साथ शीर्ष नाजी अधिकारी जैसे हरमन गोएरिंग, जोसेफ गोबेल्स, जोएकिम रिबेनट्रॉप आदि भी स्टेडियम में मौजूद थे. मैच में मेजर ध्यानचंद की अगुवाई में भारतीय टीम ने जर्मनी की टीम को 8-1 से करारी शिकस्त दी. किताब में बताया गया है कि मैच के बाद स्टेडियम में पूरी तरह से खामोशी छा गई थी. हिटलर को विजेता टीम को गोल्ड मेडल देना था लेकिन दावा किया गया कि वह गुस्से और नाराजगी में पहले ही स्टेडियम से चला गया था.
इसके अगले दिन मेजर ध्यानचंद को संदेश मिला कि दुनिया का सबसे क्रूर तानाशाह उनसे मिलना चाहता है. किताब में लिखा है कि यह संदेश मिलने के बाद ध्यानचंद डर गए थे क्योंकि उन्होंने कहानियां सुनी हुईं थी कि किस तरह हिटलर लोगों को गोली मरवा देता है. डर के चलते मेजर ध्यानचंद ठीक से खाना भी नहीं खा पाए और ना ही उन्हें ठीक से नींद आई. अगली सुबह मेजर ध्यानचंद हिटलर से मिलने पहुंचे.
हिटलर ने बड़ी गर्मजोशी से मेजर ध्यानचंद का स्वागत किया. हिटलर ने मेजर ध्यानचंद से पूछा कि वह भारत में क्या करते हैं? मेजर ध्यानचंद ने बताया कि वह भारतीय सेना के सिपाही थे. इसके बाद हिटलर ने ध्यानचंद को जर्मन सेना में उच्च पद की पेशकश की और अपील की कि वह जर्मनी में बस जाएं. हालांकि मेजर ध्यानचंद ने अपने परिवार का हवाला देते हुए हिटलर के इस प्रस्ताव को विनम्रतापूर्वक ठुकरा दिया. हिटलर ने भी मेजर ध्यानचंद की परेशानी समझी और दोनों के बीच की मुलाकात खत्म हो गई.
अंतिम दिनों में डॉक्टर से कही थी ये बात
अपने जीवन के अंतिम दिनों में मेजर ध्यानचंद भारतीय हॉकी की स्थिति को लेकर बेहद निराश हो गए थे और वह कहा करते थे कि “हिंदुस्तान की हॉकी खत्म हो गई है. खिलाड़ियों में समर्पण नहीं है. जीतने की इच्छा ही खत्म हो गई है.” साथ ही उनके मन में इस बात की भी टीस थी कि उन्हें देश ने, सरकार ने और हॉकी फेडरेशन ने वो सम्मान नहीं दिया, जिसके वो हकदार थे. मेजर ध्यानचंद के निधन से कुछ माह पहले उनके एक दोस्त ने विदेश में इलाज कराने का सुझाव भी दिया था लेकिन ध्यानचंद ने इससे इंकार कर दिया था.
1979 के अंतिम दिनों में उनकी हालत ज्यादा बिगड़ी और उन्हें झांसी से लाकर दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया. अस्पताल में भर्ती होने के बाद वह अपने परिजनों से कहा करते थे कि उनके मेडल का ध्यान रखें और कोई उन्हें चुरा ना पाए. बता दें कि इससे पहले मेजर ध्यानचंद का एक मेडल एग्जीबिशन से चोरी हो गया था. तभी से वह अपने मेडल्स की सुरक्षा को लेकर गंभीर हो गए थे.
किताब के अनुसार, इलाज के दौरान ही मेजर ध्यानचंद के डॉक्टर ने उनसे पूछा था कि हमारे देश में हॉकी का क्या भविष्य है? इस पर ध्यानचंद ने कहा था कि भारत में हॉकी खत्म हो गई है. जब डॉक्टर ने इसकी वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि हमारे लड़के बस खाना चाहते हैं लेकिन काम नहीं करना चाहते. बताया जाता है कि इसके कुछ दिन बाद ही मेजर ध्यानचंद कोमा में चले गए थे और 3 दिसंबर 1979 को उनका निधन हो गया.