मंदसौर। मंदसौर के सीतामऊ के भगोर गांव में नवरात्र के अंतिम दिन नवमी को माता विदाई के साथ चूल के आयोजन किया गया। आस्था और भक्ति के कई रूपों में यह भी एक रूप है, जहां भक्त अंगारों पर चलकर भक्ति की अग्नि परीक्षा देते हैं। इससे देखने के लिए जिले भर से श्रद्धालु आते हैं। अंगारों पर चलने की यह परंपरा सौ साल से ज्यादा पुरानी है।
नवरात्र में घट स्थापना से लेकर नवमी तक श्रद्धालु मां की आराधना करते हैं। इन दिनों यहां गरबा, रास और अन्य कार्यक्रम आयोजित होते हैं। नवरात्रि के अंतिम दिन माता के विसर्जन के दौरान दिनभर हवन-पूजन का कार्यक्रम होता है। इसके बाद शाम को चूल का आयोजन किया जाता है, जिसे ग्रामीण वाड़ी विसर्जन कहते हैं। इसमें ऐसे लोग अंगारों पर से चलते हैं, जिनकी मांगी हुई मन्नत पूरी हो जाती है।
नवमी के दिन करीब ढाई फीट चौड़ी और आठ फीट लंबा गड्ढा खोदा जाता है। इसमें सूखी लकड़ियां डालकर दहकते अंगारों में परिवर्तित किया जाता है। इसके बाद ग्रामीण इसमें देसी घी डालकर अंगारों को दहकाया जाता है। इसके बाद माता के भक्तों इन दहकते अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं।