मध्यप्रदेश। एक सप्ताह पूर्व प्रदेश का जो किसान खेतों में खड़ी सोयाबीन की फसल को देखकर फूला नहीं समा रहा था, आज वही किसान अपनी उजड़ी फसल देखकर आंसू नहीं रोक पा रहा है। एक अनजान सी बीमारी के चलते राज्य के बड़े भू भाग में सोयाबीन की फसल नष्ट हो चुकी है। एक पखवाडे की तेजधूप के बाद जैसे ही तेज बारिश का सिलसिला प्रारंभ हुआ, मात्र चार दिन में ही प्रदेश के मालवा अंचल, मध्य क्षेत्र, महाकौशल एवं बुंदेलखंड का एक बड़ा हिस्सा सोयाबीन फसल की तबाही से जुड़ गया है। इससे भी दु:खद यह है कि प्रदेश का सरकारी कृषि अमला एकाएक फसल नष्ट होने के सटीक कारणों व बीमारी का पता तक नहीं लगा सका है। इस रोग पर कृषि अधिकारियों की राय तक एक-सी नहीं। कोई इसे स्टेन फ्लाई, गर्डल-बीटल, सेमीफूलर, येलो मोजेकका कहर कह रहा है तो कोई अम्लीय वर्षा से जोड़ रहा है। इन्हीं कारणों पर कीट नाशक विक्रेता महंगे कीट नाशक एवं पोषक टॉनिक पीड़ित किसानों को थमाकर संकट के इस दौर में उन्हें लूट रहे हैं। महंगी लागत के बावजूद पीड़ित किसान फसल को बचाने में असफल हैं।
विशेषज्ञों की राय पर गौर करें तो मौसमी बदलाव के कारण फंगस एवं जीवाणुओं का हमला एक साथ तेजी से हुआ है। मौसमी प्रतिकूलता एवं अत्यधिक गर्मी के कारण खरीफ फसलों में फंगस की आशंका बहुत अधिक होती है। लेकिन समय रहते जब किसान फसलों पर कीट नाशकों का छिड़काव कर रहे थे, तब राज्य के कृषि अमले ने मौसम जनित फंगस से बचाव का कोई उपाय किसानों को नहीं सुझाया। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रदेश में बनी मौसमी प्रतिक्रूलता ने सोयाबीन फसल में राइजोक्टोनिया र्टरॉट एवं राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाइट फंगस को फैलने का भरपूर मौका दे दिया। यदि राज्य के कृषि अमले ने मौसमी प्रतिकूलता को देखकर खेतों में जाकर फसलों का सावधानीपूर्ण निरीक्षण किया होता तो वे कीट नाशकों के साथ उचित फंगी नाशक की सलाह देने की स्थिति में होते। ऐसा किया जाता तो निश्चित ही राज्य में नुकसान की व्यापकता इतनी अधिकन होती।