प्रदेश की 27 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल अपनी-अपनी अलग तैयारियों में जुटे हैं। लेकिन अंदरूनी सर्वे की रिपोर्ट ने सरकार और पार्टी की नींद उड़ा दी है। दरअसल भाजपा को इन 27 में से 19 सीटों पर हार का डर सता रहा है। क्षेत्र की जमीनी हकीकत जानकर चुनाव में जाने से पहले ही नेताओं को अपनी चादर का अंदाजा हो गया है। दरअसल सर्वे में उपचुनाव वाली सात सीटें ऐसी बताई गई हैं जिनमें भाजपा की जीत को मुश्किल माना जा रहा है। वहीं 12 सीटों पर भी असमंजस की स्थिति है। ऐसे में इन सीटों पर जीत के गणित ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इसमें मालवांचल में कैबिनेट मंत्री तुलसी सिलावट की सीट सांवेर भी शामिल है। बात दें कि भाजपा ने उपचुनाव वाली सीटों पर अपनी जीत की संभावनाओं को आंकने के लिए सर्वे का सहारा लिया है। हालांकि कांग्रेस भी अब तक यहां लगातार सर्वे करा रही थी। बहरहाल भाजपा को जो रिपोर्ट मिली है उसमें कहा गया है कि उसके प्रत्याशियों को
कांग्रेस के समक्ष जमकर संघर्ष करना होगा। इसका बड़ा कारण खुद भाजपा के भीतर सिंधिया व उनके समर्थकों में
आपसी तालमेल नहीं बैठ पाना है।
कार्यकर्ताओं में मनमुटाव की स्थिति
भाजपा को अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए कांग्रेस के समक्ष जमकर संघर्ष करने की नौबत बन रही है।
वह इसलिए भी कि खुद भाजपा के भीतर सिंधिया व उनके समर्थकों की अप्रत्याशित आमद से टकराव व
मनमुटाव की नौबत बन गई है। यह स्थिति चुनाव में अपना असर दिखा सकती है। खासतौर पर सांवेर में
भाजपा के पक्ष में माहौल नहीं बन पा रहा है। हालांकि तुलसी सिलावट यहां बहुत समय से जोर लगा रहे हैं,
साथ ही मुख्यमंत्री ने भी वहां के कार्यकर्ताओं एवं नेताओं की बैठक ली है। सिलावट के लिए ज्योतिरादित्य
सिंधिया ने भी नेताओं को साधने की कोशिश की है। पार्टी संगठन हर सीट को गंभीरता से ले रहा है। पार्टी
सूत्रों की मानें तो सर्वे रिपोर्ट के बाद पार्टी ने यहां नए सिरे से रणनीति तैयार करने का काम शुरू कर दिया है।
इसी तरह सांची और सुवासरा की सीटें भी खतरे में बताई गई हैं। इन सीटों पर भी कांग्रेस से भाजपा में आकर
मंत्री बने डॉक्टर प्रभु राम चौधरी और हरदीप सिंह डंग की जीत आसान नहीं लगती। इसी तरह ग्वालियर-
चंबल अंचल की पूर्व विधायक मुन्नालाल गोयल की सीट ग्वालियर, रघुराज सिंह कंसाना की मुरैना, रणवीर जाटव
की गोहद और गिर्राज डंडोतिया की दिमनी सीट पर भी खतरा साफ दिखाई दे रहा है। इसके साथ ही
बुंदेलखंड की सुरखी सहित तीन अन्य सीटों को भी संघर्षपूर्ण कहा गया है।
प्रचार में भाजपा की शुरुआती बढ़त बहरहाल उपचुनाव की मैदानी तैयारी और प्रचार में भाजपा शुरुआती बढ़त ले चुकी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्षवीडी शर्मा पिछले कई दिनों से वर्चुअल रैली और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से लगातार पार्टी कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं से संवाद करते रहे हैं। विधानसभा वार संगठन स्तर पर भी बैठकों का सिलसिला चला। संगठन ने प्रत्येक बूथ को मजबूती देने रणनीति बनाई है। लेकिन इसके बावजूद भी करीब आठ-दस विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां पुराने चेहरों को छह महीने बाद अब दूसरे दल से विजय पताका फहराना मुश्किल लगने लगा है। कुछ क्षेत्रों में भारी कशमकश है। मैदानी स्थिति का भान कांग्रेस का दामन छोड़कर आए मंत्री, पूर्व विधायकों को भी होने लगा है। इसकी पुष्टि चुनावी क्षेत्रों की हकीकत जानकर नेताओं की हालत देखकर की जा सकती है।
चुनावी सर्वे ने बढ़ाई चिंता
उपचुनाव वाली सीटों पर सत्ताधारी दल भाजपा अलग-अलग स्तर पर इन क्षेत्रों में सर्वे करा चुकी है। इसी तरह प्रदेश कांग्रेस की ओर से भी तीन अलग-अलग एजेंसियों के माध्यम से सर्वे कराए गए हैं। इन क्षेत्रों में सक्रिय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समयदानी और प्रचारकों का जो फीडबैक आया है उससे भी कई भावी प्रत्याशियों की नींद उड़ी हुई है। हालांकि उपचुनाव में बसपा की सभी सीटों पर मौजूदगी को भाजपा अपने लिए फायदेमंद मान रही है, क्योंकि इससे कांग्रेस को अपने पारंपरिक वोट का नुकसान होगा।