मुरैना। यूरो चंबल नदी पिछले दिनों खतरे के निशान से महज चार मीटर नीचे रह गई थी। ऐसे में प्रशासन के माथे पर बल पड़ गए और आनन-फानन में चंबल किनारे के गांवों में मुनादी सहित अन्य आवश्यक कदम उठाए गए। हालांकि ऊपरी इलाकों में बरसात बंद होने एवं कोटा बैराज से चंबल में अधिक पानी नहीं छोड़े जाने की वजह से अब चंबल नदी का जल स्तर काफी नीचे चला गया है। जल स्तर कम होने से नदी किनारे के गांवों में निवास करने वालों ने राहत की सांस तो ली है, साथ ही अधिकारियों के भी जी में चैन आया है।
उल्लेखनीय है कि चंबल नदी जब खतरे के निशान 138 मीटर से ऊपर आती है, तब मुरैना जिले में चंबल किनारे के 68 गांव डूब में आ जाते हैं। यह स्थिति तब है जब चंबल का पानी 144.40 मीटर तक रहे। अगर इससे भी ऊपर पानी जाता है तो डूब प्रभावित गांवों की संख्या और बढ़ जाती है। पिछले साल जब सितंबर महीने में चंबल का जल स्तर बढ़ा था, तब सबलगढ़, कैलारस, जौरा, मुरैना, अंबाह एव पोरसा के करीब पौन सैकड़ा गांवों में पानी भर गया था। इन गांवों में निवास करने वाले हजारों ग्रामीणों को अपना घर छोड़कर अन्यत्र जाना पड़ा था।
बाढ़ की वजह से ग्रामीणों का भारी नुकसान हुआ था। मकान क्षतिग्रस्त हुए, वहीं अनाज व चारा तक नष्ट हो गया। अब चूंकि एक साल बाद चंबल नदी में जल स्तर फिर बढ़ा है और प्रशासन ने भी ग्रामीणों को सतर्क रहने को कहा है। ऐसे में ग्रामीणों के सामने पिछले साल की तस्वीर आ गई हैं। चंबल किनारे निवास करने वालों का कहना है कि पिछले साल आई बाढ़ से वह अब तक नहीं उबर पाए हैं। योंकि बाढ़ की चपेट में आकर उन्हें भारी नुकसान हुआ था, ऊपर से शासन प्रशासन से उन्हेंकिसी तरह की कोई मदद नहीं मिली। कई ग्रामीण तो अपने क्षतिग्रस्त मकानों में ही रह रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अगर इस बार भी स्थिति पिछले साल जैसी बनी तो उनके हालात बहुत ही ज्यादा खराब हो जाएंगे। वह भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं कि अब चंबल नदी का पानी खतरे के निशान को पार नहीं करे।