मध्यप्रदेश। जिन नेताओं ने अपनी पूरी जिंदगी कांग्रेस की सेवा में खपा दी, अब उनकी नीयत पर ही संदेह किया जा रहा है। पार्टी के कायाकल्प की योजना तैयार करने के मकसद से पत्र लिखने वाले 23 कांग्रेस नेता जिस तरह अपने कदम पीछे खींचने को तैयार नहीं उससे कांग्रेस की मुसीबत बढ़ती जा रही है। कांग्रेस अपने अस्तित्व के अब तक के सबसे बड़े संकट से जूझ रही है, क्योकि वह दिशाहीन हो गई है और इसके चलते उसके कार्यकर्ता हताश हैं। कांग्रेस कार्यसमिति की हालिया बैठक में जिस तरह पत्र लिखने वालों की आवाज को दबाया गया उससे स्पष्ट है कि पार्टी को अपनी निजी जागीर की तरह चलाने वाले नेहरू-गांधी परिवार और उनके चापलूस ईमानदारी से आत्मविश्लेषण नहीं करेंगे। पार्टी नेतृत्व में जब नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य शीर्ष पर होता है, तब चर्चा और सामूहिक नेतृत्व को लेकर एक खास रुझान देखने को मिलता है। तब आत्म विश्लेषण के किसी भी विद्रोह की संज्ञा दी जाती है और पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र एवं सामूहिक नेतृत्व की मांग ईशनिंदा सरीखी मानी जाती है।
जब परिवार से बाहर का कोई अध्यक्ष होता है तो ऐसी मांग अवश्य उठाई जाती है। पीवी नरसिंह राव, सीताराम केसरी और अन्य नेता जब अध्यक्ष थे तो ऐसी ही आवाजें उठाई गई थीं। इस पैमाने से देखा जाए तो सोनिया के नेतृत्व वाली कांग्रेस में बदलाव के लिए पत्र लिखने वाले 23 नेताओं का यह कृत्य किसी पाप से कम नहीं माना जाएगा। जो भी हो, इन नेताओं ने एक तरह से कांग्रेस की परंपराओं से विमुख होने का ही फैसला किया। अच्छी बात यह है कि वे अपने रुख पर अडिग हैं। पत्र लिखने वाले कांग्रेस नेताओं ने अपनी यह बात घुमा फिराकर कहने के बजाय दो टूक लहजे में कही कि एक के बाद चुनावों में पराजय पार्टी के पराभव का संकेत करती है। उन्होंने कहा कि इसके तमाम कारण हैं, जिनकी तत्काल पड़ताल की जानी चाहिए, अन्यथा कांग्रेस राज्यों के साथ-साथ केंद्र में भी हाशिये पर सिकुड़ती जाएगी, जिसके प्रमाण पहले से ही दिखने भी लगे हैं। पत्र से भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे लिखने वाले नेता वास्तव में एक ईमानदार आकलन कर सवालों की तह में जाकर उनके जवाब तलाशना चाहते हैं।
देश की सबसे पुरानी पार्टी के भविष्य की चिंता उन्हें सता रही है। यही कारण है कि उन्होंने पत्र में पार्टी अध्यक्ष को बड़ी स्पष्टता से इस सच्चाई से परिचित कराया है कि पार्टी के समर्थन की जमीन खासकर युवाओं में उसका आधार लगातार खिसक रहा है। पार्टी के चुनावी प्रदर्शन के आधार पर उन्होंने कहा कि विगत छह वर्षों में देश में 18.7 करोड़ नए मतदाता जुड़े, लेकिन पार्टी उन्हें आश्सवात नहीं कर पाई और उन्होंने दिल खोलकर मोदी एवं भाजपा के पक्ष में मतदान किया। उन्होंने इस ओर भी संकेत किया कि 2009 के आम चुनाव में भाजपा के मतों की जो संया सिकुड़कर 7.84 करोड़ रह गई थी, वह 2014 में बढ़कर 17.60 करोड़ और 2019 में और चढ़कर 22.90 करोड़ हो गई। इसकी तुलना में कांग्रेस के प्रदर्शन में भारी गिरावट देखी गई। उसने 2009 में 12.30 वोट हासिल किए, जो 2019 तक घटकर 11.94 करोड़ रह गए। पत्र लिखने वाले नेताओं का कहना है कि इतने दयनीय प्रदर्शन के बावजूद कांग्र्रेस ने लगातार मिल रही हार के कारणों की ईमानदारी से विवेचना नहीं की। सीधे शब्दों में कहें तो इन नेताओं का कहना है कि आत्मविश्लेषण का अभाव पार्टी के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं। इन नेताओं ने कई सुझाव भी दिए हैं। वे देश भर में व्यापक सदस्यता अभियान और सभी स्तरों पर चुनाव की हिमायत कर रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि चुनौतियों की गंभीरता को देखते हुए यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि पार्टी सामूहिक-संस्थागत नेतृत्व का सहारा ले, जो उसे सही दिशा दिखा सके। पार्टी को ये सुझाव अच्छी समझ वाले नेताओं की ओर से मिले हैं, जिनमें किसी तरह की कोई दुर्भावना नहीं है।
उन्होंने ये बातें इसलिए नहीं की हैं कि उनका झुकाव भाजपा क ओर है जैसा कि शुरू में आरोप भी लगाया गया। इनमें से किसी भी नेता ने अतीत में मोदी या भाजपा के प्रति जरा भी नरमी नहीं दिखाई है। यह कोई छिपी बात नहीं कि नेहरू-गांधी परिवार ने हमेशा आंतरिक विमर्श को उपेक्षित किया है। मई 1999 में शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने भी कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कुछ अहम सवाल उठाए थे। तब सोनिया गांधी की नागरिकता को लेकर बहस छिड़ी हुई थी और आम चुनावों में वह बेहद अहम मुद्दा बन गया था। संगमा ने उनसे पूछा था कि या उनके पास भारत और इटली की दोहरी नागरिकता है? उन्होंने यह सवाल इस मंशा के साथ पूछा था कि इस पर स्पष्टीकरण के साथ पार्टी कार्यकर्ता उन अफवाहों की काट करने में सक्षम होंगे, जो विपक्षी दलों द्वारा फैलाई जा रही हैं।
सोनिया ने उस सवाल का जवाब नहीं दिया। इसके बजाय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद पार्टी ने पवार, संगमा और अनवर को निष्कासित कर दिया। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग ने वह चुनाव आसानी से जीत लिया। उस चुनाव में कांग्रेस का मत प्रतिशत 28.30 प्रतिशत था, जो 2019 में सिकुड़कर 19.50 प्रतिशत रह गया। यदि पत्र लिखने वाले 23 नेताओं को ही किनारे कर दिया जाता है तो इससे कांग्रेस को या हासिल होगा? इस पूरी कवायद में खासतौर से गुलाम नबी आजाद, वीरप्पा मोइली, पीजे कुरियन, आनंद शर्मा, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कपिल और पृथ्वीराज चव्हाण को निशाना बनाया जा रहा है। कुरियन 1959 में छात्र जीवन के दौरान ही कांग्र्रेस से जुड़े थे। वह पार्टी से 60 वर्षों के जुड़ाव का दावा कर सकते हैं। वह 1980 से संसद में हैं।