जबलपुर। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मध्य प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। सात साल से अधिक अवधि से इस अवसर की प्रतीक्षा की जा रही थी। एक समय यह प्रतीक्षा समाप्त होने की उम्मीद जागी थी, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण के मुद्दे पर यह प्रक्रिया विलंबित हो गई। मामला हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तब पहुंचा। संवैधानिक प्रविधान व न्यायदृष्टांतों की रोशनी में हाई कोर्ट ने राहत से इन्कार किया। लिहाजा, ओबीसी वर्ग सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। मध्य प्रदेश शासन ने भी उसका साथ दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा। उसने साफ कर दिया कि प्रदेश में बिना ओबीसी आरक्षण के पंचायत चुनाव कराया जाए। इस आदेश में संशोधन की मांग के साथ मध्य प्रदेश शासन ने नए सिरे से प्रयास किया। इसका बेहतर नतीजा सामने आया। अब सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण प्रतिशत न होने की शर्त के साथ पंचायत चुनाव कराने की व्यवस्था दे दी है
सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश आने के बाद से कांग्रेस से जुड़े नेताओं की ओर से कहा जा रहा है कि हम 25 से 27 प्रतिशत तक ओबीसी आरक्षण के साथ पंचायत चुनाव के पक्ष में थे, लेकिन भाजपा की नाकामी की वजह से अब महज 14 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव होगा। वहीं भाजपा से जुड़े नेताओं का कहना है कि हमने सुप्रीम कोर्ट से ओबीसी वर्ग के हक में हारी हुई बाजी जीती है।
इधर एक अन्य समीकरण सवर्ण वर्ग से जुड़ा हुआ दिख रहा है। जैसे ही ओबीसी आरक्षण के बिना पंचायत चुनाव कराने का सुप्रीम आदेश आया था, सवर्ण वर्ग से खुशी मनाई थी। मिठाई बांटी थी। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित आदेश के जरिये 50 प्रतिशत की शर्त रखकर ओबीसी को पूर्ववत 14 प्रतिशत आरक्षण का हकदार बना दिया, तब सवर्ण वर्ग की खुशी थोड़ा कम हो गई।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में ओबीसी वर्ग की ओर से पैरवी के लिए नियुक्त विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर का तर्क है कि मध्य प्रदेश शासन को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की रोशनी में ओबीसी वर्ग को जनसंख्या के अनुपात में लाभ देना चाहिए। गेंद सरकार के पाले में है और वह अपने विवेक से निर्णय ले सकती है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस विधि विभाग से जुड़े अधिवक्ता सत्येंद्र ज्योतिषी का तर्क है कि सुप्रीम आदेश से साफ है कि 2014 में जैसे चुनाव हुए थे, वैसे ही इस बार करने होंगे। लिहाजा, ओबीसी वर्ग को फिलहाल पूर्ववत लाभ पर ही संतोष करना होगा। सरकार इस सिलसिले में कुछ अधिक लाभ देने की हालत में नहीं है।