मुरैना।मुरैना के अंबाह क्षेत्र के रुपहटी पंचायत के सरपंच पद की महिला प्रत्याशी के पति ने तेजाब पीकर अपनी जान दे दी। जान देने के कारण उसके ऊपर पूर्व सरपंच राजेन्द्र सिंह व गांव वालों द्वारा नाम वापसी का दवाब बनाया जाना बताया जा रहा है। जब उसने नाम वापस नहीं लिया तो सबने बैठक कर निश्चय कर लिया कि उसे वोट नहीं देंगे, इस पर निराशा व शर्म के कारण प्रत्याशी गुड्डीबाई के पति होतम कोरी ने तेजाब पीकर अपनी जान दे दी। इस घटना के बाद पूरे गांव में मातम पसरा है और लोगों को डर सता रहा है कि अगर मामले की जांच हुई तो उनका जेल जाना लगभग तय है।
बता दें, कि अंबाह क्षेत्र के रुपहटी गांव से आरक्षित सरपंच पद की सीट के लिए महिला उम्मीदवार गुड्डीबाई कोरी व वर्षा जाटव खड़ी हुई थीं। गांव के पूर्व सरपंच राजेन्द्र सिंह व कुछ अन्य समाजों के लोग यह चाहते थे कि वर्षा जाटव जीते, लिहाजा उन्होंने गुड्डीबाई कोरी के पति होतम कोरी पर नाम वापस लेने के लिए दवाब बनाना शुरु कर दिया। जब होतम कोरी ने प्रत्याशी पद से अपनी पत्नी का नाम वापस नहीं लिया तो उन्होंने मतदान से ठीक पहली रात दो बजे गांव से बाहर एक बैठक की। बैठक में जाटव, परमार, तोमर, भदौरिया, गुर्जर व अन्य समाजों के लोग शामिल हुए। बैठक में उन्होंने कहा कि वे एकराय होकर वर्षा जाटव को जिताएंगे। उसके बाद उनके मुखिया व गांव के पूर्व सरपंच राजेन्द्र सिंह ने होतमकोरी के छोटे भाई पातीराम कोरी को बुलाकर कहा कि हम सबने वर्षा जाटव को जिताने का निर्णय कर लिया है लिहाजा तुम्हारी पत्नी गुड्डी बाई को बैठाल दिया है।
अब तुम चुनाव नहीं लड़ोगे तथा तुम अब पोलिंग के लिए अपना कोई ऐजेंट नहीं बनाना। यह बात जब छोटे भाई पातीराम कोरी ने अपने बड़े भाई होतम कोरी से कही तो उन्हें गहरा धक्का लगा। इसी निराशा व शर्म के चलते उन्होंने घर में रखी तेजाब की बोतल गटक ली। मरने से पहले उन्होंने अपने पुत्र दीपक कोरी व बड़े बेटे ज्ञान सिंह कोरी से कहा कि जब गांव वालों ने उन्हें अपना नहीं समझा और उनके साथ गद्दारी की तो उन्हें अब जिंदा रहने का कोई हक नहीं है, मैने तेजाब पी लिया हैै और अब हम बचेंगे नहीं। इतना सुनते ही उनके परिजन उन्हें गंभीर अवस्था में जिला चिकित्सालय मुरैना लाए जहां लाते समय रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। गांव वाले हमारे पिता की मौत के जिम्मेदार हैं। उन्होंने एकराय होकर हमारी पिता की हत्या की है। अगर वे उनसे बैठ जाने को नहीं कहते तो वे जान नहीं देते। अगर उन्हें वोट नहीं देना था तो नहीं देते लेकिन बैठालने का क्या अधिकार था।