भोपाल। देशभर में दशहरा पर्व पर रावण के विशाल पुतलों का दहन किया जाता है और बुराई पर अच्छाई की जीत के मौके पर विजयादशमी मनाई जाती है। लेकिन मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में लोग रावण के पुतलों का दहन नहीं करते बल्कि उसकी पूजा करते हैं। आइए आपको बताते हैं वे कौन सी जगहें हैं जहां रावण के पुतलों का दहन नहीं किया जाता है।
विदिशा जिले के नटेरन तहसील में रावण गांव है, यहां रावण की पूजा होती है। इस गांव में लोग रावण को बाबा कहकर पूजते हैं। यहां उसकी मूर्ति भी है और सभी काम शुरू होने से पहले रावण की प्रतिमा की पूजा की जाती है। मान्यता है कि रावण की पूजा किए बगैर कोई भी काम सफल नहीं होता। इतना ही नहीं नवदंपति रावण की पूजा के बाद ही गृह प्रवेश करते हैं।
इंदौर के परदेशीपुरा में रावण का मंदिर है। यहां लोग मन्नत का धागा भी बांधते हैं। यह मंदिर महेश गौहर ने 2010 में बनवाया था। तब उनके पड़ोसियों ने इस मंदिर को लेकर सवाल उठाए थे, लेकिन धीरे-धीरे अब लोगों का मंदिर पर विश्वास बढ़ता जा रहा है। लोग आरती में शामिल होते हैं
मंदसौर जिले के खानपुरा क्षेत्र में रुण्डी में रावण की दस सिरों वाली प्रतिमा स्थापित है। इस गांव को रावण का ससुराल माना जाता है। लोगों का कहना है कि मंदोदरी यहीं की रहने वाली थी। पहले इस गांव को दशपुर के नाम से भी जाना जाता था। गांव में रावण की प्रतिमा का दहन नहीं होता, लोग आज भी रावण को इस गांव का दामाद मानते हैं। बहुएं रावण की प्रतिमा के पास बिना घूंघट किए नहीं जाती।
उज्जैन जिले के चिखली गांव में लोग रावण की प्रतिमा का दहन नहीं करते, ग्रामीणों का मानना है कि यहां रावण की प्रतिमा दहन करने पर गांव में आग लग जाएगी। इसलिए यहां दशहरे के मौके पर रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है।