भोपाल। आज कार्तिक कृष्ण चतुर्थी है। सुहागन महिलाओं द्वारा अखंड सौभाग्य की कामना से करवा चौथ का पर्व आज के दिन ही मनाया जाता है। इसे करक चतुर्थी भी कहते हैं। करवा या करक मिट्टी का पात्र होता है, जिसके जरिए सुहागन महिलाएं चंद्रदेव को अर्घ्य अर्पित करती हैं। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक पांच साल बाद इस बार करवा चौथ रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाएगा। आज सोलह श्रृंगार कर सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर अपने सुहाग की लंबी आयु कामना करेंगी। चांद देखने के बाद ही महिलाएं अपना उपवास खोलेंगी। इस दिन व्रत में भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा करने का विधान है। रात को चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। पंडित रामजीवन दुबे व ज्योतिषाचार्य पंडित जगदीश शर्मा ने बताया कि इस बार पूजा के लिए करवा चौथ पर विशिष्ट संयोग बन रहे हैं। जिन्हें कई विद्वान बिना देखे ही शुक्रास्त के चक्कर में नजर अंदाज किए जा रहे हैं। इस दिन रोहिणी व कृतिका नक्षत्र के अलावा भद्र, हंस एवं शश महासंयोग भी बन रहा है। जैसा कि यह पर्व प्रतीक है प्यार और सौभाग्य का, उसी के अनुसार इस पर्व पर बेहद शुभ योग बना है। यह अद्भुत संयोग करवाचौथ के व्रत को और भी शुभ फलदायी बना रहा है।
सुहागन महिलाएं निर्जला व्रत रहकर पूजा-पाठ करेंगी। शाम को सोलह श्रृंगार कर छलनी से पति का दीदार कर चंद्रमा को अर्घ्य देंगी। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से महिलाओं के पति की आयु जहां लंबी होती है। वहीं उसे सुख-समृद्धि भी मिलती है। मान्यता है कि पांडवों की रक्षा के लिए इस व्रत को द्रौपदी ने भी रखा था। चंद्रमा निकलने के साथ ही चलनी में पति का दर्शन किया जाता है। बाद में पति के हाथ से ही खाकर व्रत का पारण किया जाता है।
इस साल चतुर्थी तिथि 12 अक्टूबर को रात 01 बजकर 59 मिनट से प्रारंभ हो रही है, जो कि 13 अक्टूबर को रात 03 बजकर 08 मिनट तक रहेगी। शुभ मुहूर्त शाम 6:01 से 8:37 बजे तक रहेगा। वहीं चन्द्रोदय रात्रि रोहिणी नक्षत्र में रात 7:35 से 8:50 बजे के बीच होगा। भोपाल में चांद निकलने का समय 08:21 बजे है।
सुबह सूर्योदय से पहले स्नान कर लें। मंदिर की साफ-सफाई कर ज्योत जलाएं। निर्जला व्रत का संकल्प लें। इस दिन शिव परिवार की पूजा-अर्चना की जाती है। सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें। माता पार्वती, भगवान शिव और भगवान कार्तिकेय की पूजा करें। शाम को चंद्रमा निकलने के बाद विधिवत पूजा करने के साथ जल से अर्घ्य दें। इसके बाद दीपक जलाकर छलनी से चंद्र दर्शन करने के साथ पति को छलनी से देखें। इसके बाद पति के हाथ से पानी ग्रहण व्रत का पारण करें।