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Thursday, November 14, 2024

चंबल अंचल के ये दो दिग्गज नेता लड़ सकते हैं इन सीटों से चुनाव

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भोपाल। लोकसभा चुनाव के पहले प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं। बीजेपी में शामिल हुए ज्योदिरादित्य सिंधिया लोकसभा चुनाव के मैदान में भी नजर आ सकते हैं। लेकिन खबर ये है कि सिंधिया अपने परंपरागत चुनाव क्षेत्र ग्वालियर या गुना से चुनाव नहीं लड़ेंगे, बल्कि एकदम नई सीट से वे चुनावी मैदान में नजर आएंगे। इस बात को लेकर पार्टी के अंदर चर्चा शुरू हो चुकी है। इसके अलावा नरेंद्र सिंह तोमर भी अपनी लोकसभा सीट मुरैना को बदलने वाले हैं।

 

 

लोकसभा चुनाव को देखते हुए ये खबर बहुत पहले की मानी जा सकती है सिंधिया भोपाल या इंदौर से अगले लोकसभा सांसद प्रत्याशी हो सकते हैं। लेकिन बीजेपी के अंदर इसकी चर्चा शुरू हो चुकी है। अब सवाल है कि सिंधिया अपनी परंपरागत सीट गुना-शिवपुरी को छोड़कर भोपाल या इंदौर क्यों आना चाहते हैं। इसके पीछे बड़ी वजह है। पिछले लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित हार का सामना कर चुके सिंधिया ऐसी सीट चाहते हैं जो बीजेपी के लिहाज से सुरक्षित हो। राजधानी भोपाल और इंदौर दो ऐसी सीट हैं जो बीजेपी की परंपरागत सीट हैं जहां से दशकों से कांग्रेस जीत का स्वाद नहीं चख सकी है। भोपाल से प्रज्ञा ठाकुर और इंदौर से सांसद शंकर लालवानी पहली बार के सांसद हैं और इनको टिकट देने के पीछे की वजह इनके कद, लोकप्रियता या जनाधार नहीं था बल्कि तात्कालिक राजनीतिक कारण थे। इसलिए यहां पर सिंधिया को उम्मीदवार बनाने को लेकर कोई बड़ी मुश्किल या विरोध नहीं रहेगा। सिंधिया चुनाव के मसले और कांग्रेस के विरोध पर सिर्फ इतना कहते हैं कि उनका राजनीति करने का मकसद सिर्फ जनसेवा है बाकी कुछ नहीं। उनकी कहीं किसी से दोस्ती-दुश्मनी नहीं है।

 

भोपाल या इंदौर जैसी सुरक्षित सीट पर सिंधिया को चुनाव लड़ाने के पीछे बीजेपी का अपना अलग मकसद है। बीजेपी सिंधिया का उपयोग विधानसभा चुनाव के अलावा लोकसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर करना चाहती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सिंधिया की युवा फैन फॉलोइंग है। उनकी ऊर्जा के साथ आकर्षण भी है। इसलिए मध्यप्रदेश की सभी सीटों पर उनको प्रचार प्रसार का जिम्मा सौंपा जाएगा। इसके अलावा उनको उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी भेजा जा सकेगा। ये तभी संभव होगा जब कि उनको ऐसी सीट से चुनाव लड़ाया जाए जहां हार की कोई गुंजाइश न हो और उस सीट पर सिंधिया को ज्यादा वक्त ना गुजारना पड़े। इन सीटों पर पार्टी का संगठन बहुत मजबूत है जो सिंधिया के लिए प्रचार कर जीत सुनिश्चित करेगा। इसके लिए सिंधिया राजनीतिक जमावट भी करने लगे हैं। उनके प्रदेश के दौरे भी बढ़ गए हैं। हर हफ्ते वे एक या दो बार प्रदेश का दौरा कर ही लेते हैं।

 

सिंधिया के लिए मुफीद नहीं ग्वालियर-चंबल सिंधिया को सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ाने के पीछे एक और बड़ा कारण है। गुना-शिवपुरी हो या ग्वालियर लोकसभा सीट, यहां पर अभी भी माहौल सिंधिया के लिए मुफीद नहीं है। पार्टी की रायशुमारी में ये बात भी सामने आई है। भले ही ग्वालियर-चंबल सिंधिया की रियासत या प्रभाव का क्षेत्र माना जाता हो लेकिन चुनावी राजनीति में बात अलग होती है। गुना से सिंधिया 2019 में अपने ही छोटे से समर्थक केपी यादव से सवा लाख वोटों से हार गए थे। यहां जीत केपी यादव की नहीं हुई, बल्कि सिंधिया की हार हुई थी। केपी यादव का वैसे भी कोई प्रभाव या राजनीतिक वजनदारी नहीं थी, लोग सिंधिया से नाराज थे और इसी वजह से सिंधिया यहां से चुनाव नहीं जीत सके। विधानसभा के उपचुनावों में भी कांग्रेस ने यहां पर अच्छी सफलता हासिल की थी। यहां तक कि नगरीय निकाय चुनावों में ग्वालियर और मुरैना जैसे नगर निगम पर भी कांग्रेस का झंडा लहरा गया। ये संकेत ग्वालियर—चंबल में कांग्रेस के प्रभाव के रुप में भी देखा जा रहा है। यही कारण है कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ये कह चुके हैं कि सिंधिया कोई तोप नहीं हैं।

 

बीजेपी के दिग्गज नेता केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के लिए तैयार हो रही ग्वालियर की जमीन सिंधिया के अलावा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी अपनी लोकसभा सीट बदलने की तैयारी कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो तोमर इस बार मुरैना से नहीं, बल्कि ग्वालियर से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। मुरैना में अब तोमर के लिए जीत अब आसान नहीं रही है। यही कारण है कि वे ग्वालियर में अपनी जमावट करने लगे हैं।

 

 

वही बात करे कांग्रेस की, तो कांग्रेस ने पूरी रणनीति के साथ पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और उनके पुत्र जयवर्धन सिंह को इस इलाके का जिम्मा सौंप दिया है। दिग्विजय सिंह यहां की राजनीतिक बुनावट में जुट गए हैं। ग्वालियर-चंबल जीतने का मतलब ना सिर्फ कांग्रेस का सरकार बनाने की तरफ एक कदम बढ़ाना है और उतना ही सिंधिया को कमजोर करना है। गुना वैसे भी दिग्विजय सिंह का गृह जिला माना जाता है। इससे पहले सिंधिया के कांग्रेस में होते हुए कोई भी इस क्षेत्र में दखल नहीं देता था, लेकिन अब समीकरण बदल गए हैं।

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