भोपाल । लगातार आठवें चीते की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कूनो प्रबंधन पर लागतार लापरवाही के आरोप लग रहे हैं। बावजूद इसके चीतों की देखरेख में उदासीनता देखने को मिल रही है। समय पर उपचार नहीं मिलना भी मौत का एक बड़ा कारण बताया जा रहा है। अफ्रीका के विशेषज्ञ और मध्य प्रदेश के डाक्टरों की टीम चीतों की देखरेख के लिए कूनो में तैनात है लेकिन शुक्रवार को सुबह जानकारी मिलने के तीन घंटे बाद तक उपचार की कोई व्यवस्था नहीं की गई।
तीन घंटे बाद चिकित्सक और अधिकारी मौके पर पहुंचे
चीता तेजस की मौत का कारण भी समय पर उपचार न मिलना बताया जा रहा है। शुक्रवार को जिस चीता सूरज की मौत हुई वह कूनो राष्ट्रीय उद्यान में दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था। चीता निगरानी दल द्वारा सुबह पालपुर पूर्व परिक्षेत्र के मसावनी बीट में नर चीता ‘सूरज’ को सुस्त अवस्था में लेटा पाया गया। वन्य-प्राणी चिकित्सक दल एवं क्षेत्रीय अधिकारी तीन घंटे बाद मौके पर पहुंचे। लोकेशन ट्रेस करने पर चीता सूरज मौके पर मृत अवस्था में मिला। प्रारंभिक जांच में मृत्यु का कारण चीता सूरज के गर्दन एवं पीठ पर घाव होना पाया गया। मृत्यु के कारण की विस्तृत रिपोर्ट वन्य-प्राणी चिकित्सकों के दल द्वारा शव परीक्षण के बाद स्पष्ट होगी।
कूनो पार्क प्रबंधन के अनुसार शुक्रवार की सुबह 6:30 बजे चीता मानिटरिंग टीम (निगरानी दल) ने कूनो के पालपुर पूर्व परिक्षेत्र के मसावनी बीट में नर चीता सूरज को सुस्त पड़ा देखा। थोड़ा नजदीक जाने पर चीता के गले पर मक्खियां मंडराती दिखीं। निगरानी दल और पास पहुंचा तो चीता उठकर भागने लगा। दल ने इसकी सूचना कंट्रोल रूम व अधिकारियों को दी।
इसके बाद फिर उसकी खोज की गई तो वह मृत अवस्था में मिला। उसे घायल देखे जाने के बाद उपचार भी नहीं दिया जा सका। प्रारंभिक जांच में मृत्यु का कारण गर्दन और पीठ पर घाव होना बताया गया है। सवाल फिर उठने लगा है कि चोट कब लगी। मानीटरिंग दल को समय से चोट की सूचना क्यों नहीं लगी। संक्रमण बढ़ने के बाद ही पता चल पाना निगरानी प्रणाली के लिए बड़ा सवाल बन गया है।
आठवें चीते की मृत्यु पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ ने ट्वीट कर चीतों की रक्षा के लिए प्लान बनाने का आग्रह किया है। उन्होंने ट्वीट किया कि लगातार चीतों की मौत होने के बावजूद कोई योजना सामने नहीं आई है, जिसमें इन वन्य प्राणियों के जीवन को संरक्षित करने की पहल की गई हो। मैं जिम्मेदारों से आग्रह करता हूं कि वे पर्यावरणविद् और विज्ञानिकों से चर्चा कर शीघ्र ही ऐसा कोई प्लान बनाएं, जिनसे इन प्राणियों के जीवन की रक्षा हो सके।