भोपाल: वर्ष 2013 में मध्य प्रदेश में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों, जिला सहकारी केंद्रीय बैंक, और अपेक्स बैंक के चुनाव हुए थे। इन चुनावों के बाद से इन संस्थाओं में प्रशासक ही कार्यरत हैं। सरकार पर सहकारिता चुनाव कराने का दबाव है, विशेषकर हाईकोर्ट के निर्देशों के चलते। इसी दबाव के तहत सरकार ने जुलाई से सितंबर के बीच चार चरणों में चुनाव कराने का कार्यक्रम भी घोषित किया था।
50 लाख से अधिक किसानों की सहकारी समितियों के चुनाव बार-बार स्थगित होने के कारण भाजपा ने समितियों के सुचारू संचालन के लिए एक योजना तैयार की है। इस योजना के तहत, सहकारी समितियों में प्रशासकों की जगह भाजपा नेताओं की नियुक्ति की जाएगी। हाल ही में भाजपा कार्यालय में प्रदेश भर के सहकारी नेताओं और प्रदेश संगठन के बीच हुई बैठक में इस मसौदे को अंतिम रूप दिया गया है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि प्रदेश में सहकारी समितियों के चुनाव लंबे समय से नहीं हो पाए हैं।
प्रशासकों की रवानगी की जाएगी
भाजपा ने सहकारिता चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है, जिसमें सबसे पहले सहकारी समितियों से प्रशासकों को हटाने का निर्णय लिया गया है। इन सरकारी प्रशासकों की जगह भाजपा के सहकारिता नेता नियुक्त किए जाएंगे। संगठन ने सभी जिलों से 3 से 5 नामों की सूची मांगी है, और सूची मिलते ही नियुक्तियों की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इसके साथ ही, भाजपा प्रदेश भर में सदस्यता अभियान चलाकर समितियों को पुनर्जीवित करने का काम करेगी, ताकि चुनाव होने पर पार्टी की पकड़ कमजोर न हो।
जैसे ही ये नियुक्तियाँ होंगी, सरकारी अधिकारी प्रशासक की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएंगे। भाजपा के सहकारिता नेता समितियों का प्रबंधन संभालते ही गाँव स्तर पर समितियों को पुनर्जीवित करने का काम करेंगे। सरकार द्वारा नियुक्त किए गए भाजपा नेताओं को तीन मुख्य कार्य सौंपे जाएंगे: सदस्यता अभियान चलाना, समितियों का परिसीमन करना, और डिफाल्टर सदस्यों से कर्ज वसूलना। इसके बाद उन्हें समितियों के चुनाव कराने होंगे।
इन नियुक्तियों के बाद, इन नेताओं को छह महीने के भीतर खुद भी चुनाव जीतना होगा और अपनी समितियों के चुनाव कराने होंगे। प्रदेश में नवंबर के बाद चुनाव प्रक्रिया शुरू हो सकती है, ताकि अगले छह महीनों के भीतर प्रदेश स्तर पर चुनाव पूरे हो जाएं।
प्रदेश की सहकारी समितियों से लगभग 50 लाख किसान जुड़े हुए हैं। प्रदेश में 4,534 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियाँ हैं, जिनके चुनाव 2013 में हुए थे और संचालक मंडल का कार्यकाल 2018 तक था।