हालांकि, इस विशेष अभियान की घोषणा के साथ ही एक महत्वपूर्ण सवाल उठ खड़ा हुआ है। गौ सेवकों, जो पारंपरिक रूप से गो रक्षा कार्यों में सक्रिय रहते हैं, उन्हे इस अभियान में शामिल नहीं किया गया है। इस तरह के फैसले से गौ सेवकों के प्रति सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल उठने लगे हैं।
इस समिति में गौ सेवकों को शामिल नहीं किया गया और न ही उन्हें अभियान के कार्यों में कोई भूमिका दी गई है। इसके अलावा, गौ सेवकों को इस विशेष अभियान का हिस्सा बनाने के बजाय प्रशासनिक अधिकारियों को इस जिम्मेदारी सौंपने से सरकार की नीतियों पर चर्चा शुरू हो गई है। इस समिति में गौ सेवकों को शामिल नहीं किया गया और न ही उन्हें अभियान के कार्यों में कोई भूमिका दी गई है। इसके अलावा, गौ सेवकों को इस विशेष अभियान का हिस्सा बनाने के बजाय प्रशासनिक अधिकारियों को इस जिम्मेदारी सौंपने से सरकार की नीतियों पर चर्चा शुरू हो गई है।
गौसेवक संगठनों और उनके समर्थकों ने सरकार के इस फैसले पर विरोध जताया है। उनका कहना है कि गौसेवक ही इस क्षेत्र में अनुभव और विशेषज्ञता रखते हैं और उन्हें इस महत्वपूर्ण कार्य में शामिल किया जाना चाहिए था। इसके विपरीत, प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, जिनके पास इस तरह के कार्यों का अनुभव नहीं है।
विशेष अभियान की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि प्रशासनिक अधिकारी इस चुनौती को कितनी प्रभावी ढंग से संभाल पाते हैं। वहीं, गौ सेवकों की अनुपस्थिति ने राज्य के गो रक्षा कार्यक्रम और उनकी भूमिका को लेकर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह स्पष्ट है कि आवारा मवेशियों की समस्या के समाधान के लिए उठाए गए इस कदम को लेकर सरकार और गौ सेवकों के बीच मतभेद हैं, और यह विषय आगे की राजनीति और प्रशासनिक रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस विशेष अभियान की सफलता या विफलता भविष्य में ही स्पष्ट होगी, लेकिन फिलहाल यह निर्णय सरकार और पार्टी दोनों के लिए चर्चा का विषय बन गया है।