भोपाल। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की निष्क्रियता और आंतरिक विवादों के बीच गोविंद सिंह राजपूत के मामले ने राजनीतिक हलकों में नई चर्चाओं को जन्म दिया है। कांग्रेस की ओर से इस मुद्दे पर ठोस और निर्णायक कदम उठाने की कमी ने पार्टी की स्थिति, रणनीति और प्रभावशीलता पर सवाल खड़ा किया है। 2004 से सत्ता से दूर कांग्रेस अब एक गंभीर राजनीतिक विवाद के केंद्र में आ गई है, और इसके परिणामस्वरूप पार्टी की भूमिका और रणनीति पर उंगलियां उठ रही हैं।
गोविंद सिंह राजपूत के मुद्दे पर कांग्रेस का मौन रवैया
गोविंद सिंह राजपूत के खिलाफ गंभीर आरोपों के बावजूद कांग्रेस ने अब तक उनके इस्तीफे की मांग नहीं की है। इस चुप्पी ने पार्टी की निष्ठा और कार्यक्षमता पर सवाल खड़ा किया है। मानसिंह के परिवार ने अपनी लड़ाई अकेले लड़ी है, जबकि कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सक्रिय भूमिका निभाने के बजाय, मामले को अनदेखा किया है। कांग्रेस का यह मौन रवैया इस बात को दर्शाता है कि पार्टी का दावा न्याय और पारदर्शिता की पक्षधर होने का है, लेकिन इसके कार्यवाही में पूरी तरह से अनुपस्थित है।
फिक्सिंग और आंतरिक विवाद
कांग्रेस पर आरोप लग रहे हैं कि पार्टी राजनीतिक फिक्सिंग में व्यस्त है, जो उसकी वर्तमान स्थिति को जटिल बना रही है। गोविंद सिंह राजपूत के समर्थन में जीतू पटवारी और उमंग सिंघार की लॉबिंग की तरह, कांग्रेस के कई अन्य मामलों में फिक्सिंग की बातें सामने आई हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि पार्टी की प्राथमिकताएँ और रणनीतियाँ अक्सर पुराने संपर्कों और समीकरणों को बचाने पर केंद्रित रहती हैं। इससे पार्टी की कार्यशैली और निर्णयों पर स्पष्ट असर पड़ा है।
शिवराज सिंह चौहान और व्यापम घोटाला
अतीत में, जब शिवराज सिंह चौहान पर डम्फर और व्यापम घोटाले के आरोप लगे थे, तब भी कांग्रेस ने फिक्सिंग की रणनीति अपनाई थी। पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान को बचाने के उपाय सुझाए, जिससे चौहान अपने राजनीतिक करियर को बचाने में सफल रहे। इस रणनीति के चलते शिवराज सिंह चौहान ने अपनी स्थिति को मजबूत किया, और कांग्रेस को 20 वर्षों से सत्ता से बाहर रखा। यह संकेत देता है कि कांग्रेस की फिक्सिंग की रणनीतियाँ उसके सत्ता में वापस आने की संभावनाओं को प्रभावित कर रही हैं।
वर्तमान स्थिति और कांग्रेस का मौन रवैया
वर्तमान में, जीतू पटवारी और उमंग सिंघार भी अपने पुराने संपर्कों और समीकरणों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रदेश की पुलिस पर भरोसा न होने की बात सामने आई है, फिर भी कांग्रेस ने चुप्पी साध रखी है। इस मौन रवैये ने पार्टी की साख को प्रभावित किया है और कांग्रेस की क्षमता पर सवाल उठाया है। इस समर्थन ने राजनीतिक वातावरण को और जटिल बना दिया है, और पार्टी के भीतर गहरे मतभेदों को उजागर किया है।
पीड़ित परिवार की लड़ाई
पीड़ित परिवार की लड़ाई में कांग्रेस की निष्क्रियता ने इस मुद्दे को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। कांग्रेस ने इस परिवार के संघर्ष को समर्थन देने के बजाय, अपने आंतरिक राजनीतिक लाभ को प्राथमिकता दी है। इसके परिणामस्वरूप, मानसिंह का परिवार अकेले ही न्याय की खोज में लगा रहा, जबकि पार्टी को इस मामले में सक्रियता दिखानी चाहिए थी।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की निष्क्रियता, फिक्सिंग की संस्कृति, और गोविंद सिंह राजपूत जैसे मुद्दों पर पार्टी की चुप्पी ने राजनीतिक परिदृश्य को जटिल बना दिया है। कांग्रेस की आंतरिक विवादों और रणनीतिक गलतियों ने उसे 2004 से सत्ता से दूर रखा है। अब पार्टी को चाहिए कि वह अपने मौजूदा मुद्दों को सुलझाने के लिए ठोस और निर्णायक कदम उठाए, ताकि वह अपनी राजनीतिक स्थिति को पुनर्निर्धारित कर सके। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पार्टी इस स्थिति को कैसे संभालती है और क्या आगामी समय में कोई सुधारात्मक कदम उठाती है।