हरियाणा। हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी ने अपनी पहली सूची जारी की है, जिसमें 67 उम्मीदवारों के नाम शामिल हैं। इस सूची में पार्टी के प्रमुख नेताओं की कई महत्वपूर्ण सीटों पर उम्मीदवारी की घोषणा की गई है, लेकिन एक प्रमुख बात जो चर्चा का विषय बन रही है, बीजेपी की इस सूची में परिवारवाद का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को लाडवा सीट से उम्मीदवार बनाया गया है, हाल ही में बीजेपी में शामिल हुई किरण चौधरी की बेटी को भी टिकट मिला है। श्रुति चौधरी को भी तोशाम विधानसभा से उम्मीदवार बनाया है।
राव इंद्रजीत की बेटी आरती को भी टिकट मिला है। पूर्व गृह मंत्री अनिल विज एक बार फिर से अंबाला कैंट पार्टी ने प्रत्याशी घोषित किया है।
इस सूची के माध्यम से पार्टी ने अपने नेताओं की क्षमताओं और उनके राजनीतिक अनुभव पर भरोसा जताया है, लेकिन परिवारवाद का मुद्दा एक बार फिर से सामने आया है। कई सीटों पर टिकट मिलने वाले उम्मीदवार या तो खुद प्रमुख नेता हैं या उनके परिवार से जुड़े हुए हैं।
सूची….
लिस्ट की खास बातें…
करनाल सीट से वर्तमान मुख्यमंत्री नायब सैनी को लाडवा से टिकट दी गई है।
रानियां सीट से भाजपा ने बिजली मंत्री रणजीत चौटाला की टिकट काट दी है, जो एक बड़ा राजनीतिक बदलाव है।
हिसार से टिकट की दावेदारी जता रहे नवीन जिंदल परिवार को भी झटका दिया गया है। यहां से मौजूदा विधायक मंत्री कमल गुप्ता को फिर टिकट दी गई है।
डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा को नलवा की जगह बरवाला तो वहीं कोसली के विधायक लक्ष्मण यादव को कोसली की जगह रेवाड़ी से टिकट दिया गया।
3 दिन पहले भाजपा में शामिल हुईं अंबाला की मेयर शक्ति रानी शर्मा को कालका से उम्मीदवार बनाया गया है।
रतिया सीट से पूर्व सांसद सुनीता दुग्गल को टिकट दी गई है। लोकसभा चुनाव में सिरसा से उनकी टिकट काट दी गई थी।
जजपा से आए पूर्व मंत्री अनूप धानक को उकलाना से टिकट दी गई है।
तोशाम से कांग्रेस छोड़ भाजपा में आई किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी को उम्मीदवार बनाया गया है।
अटेली से केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत की बेटी आरती राव को टिकट दी गई है।
जजपा छोड़ कांग्रेस की टिकट न मिलने पर भाजपा में आए पूर्व मंत्री देवेंद्र बबली को टोहाना से टिकट दी गई है।
महम से भारतीय कबड्डी टीम के पूर्व कैप्टन दीपक हुड्डा को टिकट दी गई है।
भाजपा की इस पहली सूची से कई नए चेहरे और राजनीतिक दांव-पेच सामने आए हैं। पार्टी ने अपने उम्मीदवारों के चयन में रणनीतिक बदलाव किए हैं, जो आगामी चुनावों में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि परिवारवाद का यह प्रभाव भाजपा की छवि पर असर डाल सकता है, खासकर उन मतदाताओं के बीच जो पारंपरिक राजनीति से बाहर निकलने की उम्मीद कर रहे हैं। भाजपा को आगामी चुनाव में केवल राजनीतिक विरोधियों से ही नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर इस परिवारवाद के मुद्दे पर भी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
एंटी-इनकंबेंसी का खतरा…
लगातार दो बार सत्ता में रहने के कारण एंटी-इनकंबेंसी की लहर उठ सकती है, जो भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है। जनता में सरकार की नीतियों, कामकाज और नेताओं के प्रति असंतोष बढ़ सकता है। साथ ही जजपा के साथ गठबंधन टूटने से भाजपा को अपने बलबूते चुनाव लड़ना पड़ेगा, जो उसकी सीटों को प्रभावित कर सकता है। इसके साथ ही मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाना भाजपा की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन इससे पार्टी को एंटी-इनकंबेंसी को संभालने में कितनी मदद मिलेगी, यह देखना बाकी है।