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Tuesday, November 12, 2024

23 अफसरों ने बिना काम किए सिर्फ हाजिरी लगाकर ले लिया 2 करोड़ वेतन

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भोपाल: मध्यप्रदेश सरकार द्वारा सरकारी निर्माणों की गुणवत्ता जांच के लिए गठित *कार्य गुणवत्ता परिषद* पिछले एक साल से निष्क्रिय है। इस परिषद में 23 अधिकारी और कर्मचारी पदस्थ हैं, लेकिन इनके पास 2023 से कोई काम नहीं है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, बिना किसी काम के यह अधिकारी सिर्फ हाजिरी लगाकर सालभर में 2 करोड़ रुपये का वेतन ले चुके हैं।

परिषद की स्थापना और वर्तमान स्थिति
कार्य गुणवत्ता परिषद की स्थापना 2022 में की गई थी, जिसका उद्देश्य प्रदेश भर में सरकारी निर्माणों की गुणवत्ता की जांच करना था। इसके लिए रिटायर्ड आईएएस अधिकारी अशोक शाह को तीन साल के लिए प्रथम महानिदेशक (डीजी) नियुक्त किया गया था। उनके कार्यकाल में परिषद ने केवल 15 निर्माण कार्यों की जांच की। हालांकि, शाह के सेवानिवृत्त होने के बाद से परिषद पूरी तरह निष्क्रिय हो गई है।

पहले होती थीं 150 से अधिक जांचें
परिषद के स्टाफ के अनुसार, 2022 में परिषद बनने से पहले हर साल 150 से अधिक निर्माणों की जांच की जाती थी। लेकिन परिषद बनने के बाद नियमों में बड़े बदलाव किए गए, जिससे स्वतंत्र जांच पर रोक लग गई। अब किसी भी निर्माण की जांच के लिए सचिव स्तर के अधिकारी की अनुमति अनिवार्य कर दी गई है। इस जटिल प्रक्रिया के चलते 2023 के बाद से कोई नई जांच नहीं हुई है।

स्टाफ का समय मोबाइल गेम में व्यतीत
परिषद में तैनात स्टाफ में सबसे अधिक संख्या प्यून और सहायक कर्मचारियों की है। 9 प्यून, 4 निज सहायक, 3 बाबू, 2 सहायक यंत्री, 2 उपयंत्री और 1 मुख्य अभियंता इस कार्यालय में तैनात हैं। लेकिन जब से काम बंद हुआ है, स्टाफ का अधिकतर समय मोबाइल गेम खेलने में व्यतीत हो रहा है।

डीजी की नियुक्ति में देरी
परिषद के डीजी की नियुक्ति के बिना परिषद के कामकाज पूरी तरह ठप हो गए हैं। परिषद के प्रमुख सचिव संजय दुबे ने बताया कि डीजी की नियुक्ति कराने के लिए जल्द ही मुख्यमंत्री से चर्चा की जाएगी। उन्होंने कहा कि डीजी की नियुक्ति के बाद परिषद फिर से सक्रिय हो जाएगी और निर्माण कार्यों की गुणवत्ता की जांच शुरू की जाएगी।

परिषद की संरचना
कार्य गुणवत्ता परिषद में मुख्यमंत्री अध्यक्ष और जीएडी मंत्री उपाध्यक्ष हैं। इसके अलावा वित्त, लोक निर्माण, जल संसाधन, लोक स्वास्थ्य, आवास, ऊर्जा, और ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री और मुख्य सचिव सदस्य हैं। हालांकि, परिषद की कार्यकारी और गवर्निंग बॉडी होने के बावजूद, बिना डीजी के कोई काम नहीं हो रहा है।

यह स्थिति न केवल सरकारी संसाधनों की बर्बादी का उदाहरण है, बल्कि सरकारी संस्थाओं के कामकाज पर भी सवाल खड़े करती है। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद यह परिषद अपनी जिम्मेदारी निभाने में सक्षम हो पाती है या नहीं।

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