रायसेन: मध्यप्रदेश में होशंगाबाद के सांसद दर्शन सिंह चौधरी और राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल के बीच वर्चस्व की लड़ाई ने एक निजी स्कूल को विवाद में घसीट लिया है। रायसेन जिले के देवरी (उदयपुरा) स्थित अभिनव गरिमा विद्या निकेतन ने शिक्षक दिवस के अवसर पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें सांसद दर्शन सिंह चौधरी और राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल को आमंत्रित किया गया। हालांकि, कार्यक्रम के आमंत्रण पत्र पर सांसद का नाम मंत्री से पहले लिखा गया, जिससे मंत्री नाराज हो गए और स्कूल को मान्यता रद्द करने का नोटिस भिजवाया गया।
मंत्री की नाराजगी और स्कूल को नोटिस
यह विवाद तब शुरू हुआ जब 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के कार्यक्रम के लिए छपे आमंत्रण पत्र में राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल का नाम सांसद दर्शन सिंह चौधरी के बाद अंकित किया गया। मंत्री इससे इतने नाराज हुए कि उनके कार्यालय से संबंधित अधिकारियों ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए रायसेन जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) से संपर्क किया और स्कूल को कारण बताओ नोटिस जारी करवाया।
12 सितंबर को डीईओ डीडी रजक की ओर से जारी किए गए नोटिस में कहा गया कि अगर स्कूल का जवाब संतोषजनक नहीं मिला, तो उसकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी। नोटिस में यह भी कहा गया कि प्रोटोकॉल के अनुसार राज्य मंत्री का नाम सांसद से पहले होना चाहिए था, क्योंकि राज्य मंत्री को सरकार में उच्च स्थान प्राप्त है।
माफी के बावजूद नोटिस
स्कूल संचालक सुनील कुमार चौरसिया ने बताया कि उन्होंने इस गलती के लिए मंत्री से माफी मांगी थी, लेकिन फिर भी स्कूल को नोटिस दिया गया। चौरसिया ने कहा, “कार्यक्रम में राज्य मंत्री को आमंत्रित करने मैं खुद गया था, लेकिन उन्होंने व्यस्तता के कारण आने से मना कर दिया था। बैनर और आमंत्रण पत्र पर गलती से उनका नाम सांसद से बाद में अंकित हो गया। हमने माफी भी मांगी थी, फिर भी नोटिस मिला।”
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने इस मामले को भाजपा के अंदरूनी संघर्ष का नतीजा बताया। उन्होंने कहा, “एक राज्यमंत्री अपनी ही पार्टी के सांसद से इतनी खुन्नस रखते हैं कि उन्होंने एक निर्दोष स्कूल को निशाना बनाया। यह भाजपा में जारी सत्ता संघर्ष का परिणाम है, जिसका खामियाजा एक स्कूल को भुगतना पड़ रहा है।”
रायसेन डीईओ डीडी रजक ने बताया कि उन्हें मंत्री के सहायक की ओर से फोन आया था, जिसके बाद उन्होंने नियमों के अनुसार नोटिस जारी किया। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि यह संभव है कि मंत्री के नाम से किसी अन्य व्यक्ति ने फोन किया हो। इस संबंध में मंत्री से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
इस विवाद ने भाजपा के भीतर नेताओं के बीच मान-सम्मान और प्रोटोकॉल को लेकर चल रहे संघर्ष को उजागर कर दिया है। सांसद और राज्य मंत्री के बीच इस तरह की तकरार ने पार्टी के अनुशासन और संगठनात्मक ढांचे पर सवाल खड़े कर दिए हैं।