भोपाल: मध्य प्रदेश में सरकारी खजाने में भारी सेंध लगाने की खबर सामने आई है। राज्य के 56 विभागों में लगभग सवा दो लाख सरकारी अधिकारी और कर्मचारी हर साल फर्जी मेडिकल बिलों के जरिए प्रदेश सरकार को करीब 250 करोड़ रुपये का चूना लगा रहे हैं। ये अधिकारी और कर्मचारी जिला अस्पतालों के डॉक्टरों और एजेंटों की मदद से फर्जी मेडिकल बिल तैयार करवा रहे हैं और इन्हें अपने विभागों में लगाकर सरकारी खजाने से राशि निकालते रहते हैं।
फर्जी मेडिकल बिल घोटाला
डीबी स्टार के एक रिपोर्टर ने इस घोटाले की गहराई को समझने के लिए खुद सरकारी कर्मचारी बनकर जिला अस्पताल से फर्जी मेडिकल बिल बनवाने की कोशिश की। रिपोर्टर ने अस्पताल में सक्रिय एजेंटों से संपर्क किया और 14 हजार रुपए का फर्जी मेडिकल बिल महज साढ़े तीन हजार रुपये में बनवा लिया। एजेंट ने 25% कमीशन के बदले 10 दिन के अंदर फर्जी बिल और Prolonged Treatment सर्टिफिकेट मुहैया कराया।
अस्पताल में एजेंटों का खुला खेल
जिला अस्पताल में एजेंट खुलेआम घूम रहे हैं, जो कर्मचारियों के लिए फर्जी मेडिकल बिल बनवाने का काम कर रहे हैं। इन एजेंटों की मदद से अधिकारी-कर्मचारी हर साल बड़ी रकम का हेरफेर कर रहे हैं। एक एजेंट ने बातचीत में बताया कि कई सरकारी विभागों के कर्मचारी एक-डेढ़ लाख रुपये के बिल नियमित रूप से बनवाते हैं और मनचाही राशि निकालते हैं। Prolonged Treatment सर्टिफिकेट इन कर्मचारियों को सालभर बीमार रहने और लगातार मेडिकल बिल लगाने का अधिकार देता है।
सिविल सर्जन और डॉक्टरों की संलिप्तता
रिपोर्टर ने जो फर्जी मेडिकल बिल बनवाया, उस पर जिला अस्पताल के डॉक्टर ए.ए. अग्रवाल के हस्ताक्षर और सील लगी थी। डॉक्टर ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि उनके पास जो मरीज आते हैं, वे उनके बिलों को वेरिफाई करते हैं और उन्हें एजेंट के फर्जी बिल बनवाने की कोई जानकारी नहीं है। इसी तरह, सिविल सर्जन डॉ. राकेश श्रीवास्तव ने भी Prolonged Treatment सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर कर दिए और कहा कि उनका काम सिर्फ काउंटर साइन करना है, जबकि असली सर्टिफिकेट डॉक्टर द्वारा जारी किया जाता है।
सरकार को 250 करोड़ का वार्षिक नुकसान
यह घोटाला सिर्फ कुछ विभागों तक सीमित नहीं है, बल्कि राज्य के सभी 56 विभागों के अधिकारी और कर्मचारी इस फर्जीवाड़े में शामिल हैं। हर साल करीब 250 करोड़ रुपये का नुकसान सरकारी खजाने को हो रहा है। इस मामले में स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव संदीप यादव ने कहा कि यदि किसी डॉक्टर या सिविल सर्जन के फर्जी बिल या सर्टिफिकेट बनाने की जानकारी मिलेगी, तो उसकी जांच करवाई जाएगी और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
मप्र में सरकारी खजाने को लूटने का यह खेल गहरी जड़ें जमा चुका है। इस घोटाले में न केवल सरकारी कर्मचारी बल्कि अस्पताल के चिकित्सक और एजेंट भी शामिल हैं। यह घोटाला प्रदेश की वित्तीय स्थिति को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। अब देखना होगा कि सरकार इस पर क्या कदम उठाती है और दोषियों पर क्या कार्रवाई की जाती है।