भोपाल: मध्य प्रदेश कांग्रेस में इस समय आंतरिक खींचतान और विरोध का माहौल गहराता जा रहा है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी को पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का विरोध झेलना पड़ रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे बड़े नेताओं ने खुलकर पटवारी के खिलाफत की है, जिससे पार्टी के भीतर असंतोष और खींचतान बढ़ती जा रही है। साथ ही, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार के साथ भी पटवारी की अनबन की खबरें सामने आई हैं।
वरिष्ठ नेताओं से टकराव
जीतू पटवारी को दिसंबर 2023 में कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था। उनके 9 महीने के कार्यकाल के बाद भी पार्टी में आंतरिक खींचतान बनी हुई है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और समकक्ष नेताओं के साथ उनकी पटरी नहीं बैठ रही है, जिसका सीधा असर उनके कामकाज पर पड़ रहा है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे अनुभवी नेताओं के विरोध ने उनकी स्थिति को और कमजोर किया है।
कार्यकारिणी का गठन नहीं कर पाए पटवारी
जीतू पटवारी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह अब तक अपनी कार्यकारिणी का गठन नहीं कर सके हैं। पार्टी के अंदर से मिल रहे विरोध के कारण वह कोई ठोस निर्णय नहीं ले पा रहे हैं, और इससे उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं।
बीजेपी का हमला
मध्य प्रदेश बीजेपी ने पटवारी के 9 महीने के कार्यकाल पर हमला बोलते हुए उनकी उपलब्धियों पर सवाल उठाए हैं। बीजेपी प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने कहा, “आप 9 महीने से प्रदेशाध्यक्ष हैं, लेकिन कोई ठोस उपलब्धि आपके खाते में नहीं है। पार्टी के भीतर ही कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और उमंग सिंगार जैसे नेताओं से आपकी नहीं पट रही है, और कांग्रेस लगातार चुनावी हार झेल रही है।”
आंतरिक कलह का प्रभाव
पार्टी के भीतर जारी इस खींचतान का असर कांग्रेस की चुनावी तैयारियों पर भी साफ देखा जा सकता है। लोकसभा से लेकर पंचायत चुनावों तक में कांग्रेस को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है, और इसका मुख्य कारण पार्टी के भीतर एकजुटता का अभाव माना जा रहा है। पटवारी का नेतृत्व कमजोर दिख रहा है, और इसका लाभ बीजेपी उठाने की कोशिश कर रही है।
आगे की चुनौतियां
जीतू पटवारी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के भीतर हो रहे इस असंतोष को शांत करना और वरिष्ठ नेताओं को साथ लेकर चलना है। अगर वह पार्टी में एकजुटता कायम नहीं कर पाते, तो आगामी चुनावों में कांग्रेस के लिए परिस्थितियां और मुश्किल हो सकती हैं।
जीतू पटवारी के 9 महीने के कार्यकाल के बाद भी कांग्रेस के भीतर गंभीर आंतरिक मतभेद और विरोध जारी हैं। पार्टी के बड़े नेताओं का विरोध और कार्यकारिणी का गठन न कर पाने की असमर्थता उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े कर रही है। वहीं, बीजेपी इस स्थिति का फायदा उठाने की पूरी कोशिश कर रही है।