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Tuesday, November 12, 2024

नगर निगम अध्यक्षों की कुर्सी बचाने की तैयारी, सरकार अविश्वास प्रस्ताव के नियमों में करेगी बदलाव

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मध्य प्रदेश सरकार नगर निगम अध्यक्षों की कुर्सी बचाने के लिए नियमों में बदलाव करने जा रही है। सरकार जल्द ही अध्यादेश लाकर नगर निगम के अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के नियमों में संशोधन करेगी। इस बदलाव के तहत अब 16 नगर निगमों के अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए तीन चौथाई सदस्यों की सहमति जरूरी होगी। साथ ही, यह प्रस्ताव अध्यक्ष की नियुक्ति के तीन साल पूरे होने के बाद ही लाया जा सकेगा।

पुराने और नए नियमों में फर्क

पुराने नियमों के अनुसार, एक तिहाई पार्षद अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकते थे, और इसे पास करने के लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती थी। इसके अलावा, यह प्रस्ताव अध्यक्ष की नियुक्ति के दो साल बाद लाया जा सकता था। लेकिन नए नियम के तहत अब अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए तीन चौथाई पार्षदों की सहमति आवश्यक होगी और यह प्रक्रिया तीन साल की अवधि के बाद ही शुरू की जा सकेगी।

सतना नगर निगम का मामला बना कारण

सतना नगर निगम के अध्यक्ष राजेश चतुर्वेदी के खिलाफ कांग्रेस के 18 पार्षदों ने 9 सितंबर को अविश्वास प्रस्ताव कलेक्टर को सौंपा था। हालांकि, जब कलेक्टर ने प्रस्ताव लाने वाले पार्षदों से वन-टू-वन चर्चा की और हस्ताक्षर का प्रमाणीकरण कराया, तो 18 में से 5 पार्षद उपस्थित नहीं हुए। इसके अलावा, दो महिला पार्षदों ने लिखित में बताया कि उन्होंने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। इस तरह, केवल 11 पार्षद ही प्रस्ताव के समर्थन में बचे, और प्रस्ताव गिर गया।

अन्य नगर निगमों पर भी असर

सतना जैसी स्थिति मध्य प्रदेश के 10 अन्य नगर निगमों में भी देखी जा रही है, जहां विपक्ष और निर्दलीय पार्षद मिलकर अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं। इनमें रीवा, जबलपुर, ग्वालियर, कटनी, मुरैना, रतलाम, बुरहानपुर, खंडवा, सिंगरौली, और छिंदवाड़ा शामिल हैं। इन नगर निगमों में विपक्षी पार्षदों की संख्या अधिक होने के कारण, अध्यक्षों की कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा था।

बीजेपी पार्षदों के बगावती तेवर से चिंतित सरकार

बीजेपी नेतृत्व को चिंता थी कि यदि उनके पार्षद पाला बदलते हैं तो कई नगर निगमों के अध्यक्षों की कुर्सी खतरे में आ सकती है। उदाहरण के तौर पर, रीवा नगर निगम में कांग्रेस और निर्दलीय पार्षदों की संख्या 27 है, जबकि प्रस्ताव पास कराने के लिए 30 पार्षदों की आवश्यकता होती है। यदि बीजेपी के 3 पार्षद विरोध में वोट करते, तो अध्यक्ष की कुर्सी छिन सकती थी। इसी तरह, कटनी और सिंगरौली नगर निगमों में भी अध्यक्षों की कुर्सी खतरे में थी।

नए नियमों का असर

नए नियमों के लागू होने से कांग्रेस के तीन नगर निगम अध्यक्षों की कुर्सी बच गई है। छिंदवाड़ा, बुरहानपुर, और मुरैना के नगर निगमों में अब अविश्वास प्रस्ताव लाना मुश्किल होगा। छिंदवाड़ा में कांग्रेस के 7 पार्षदों के बीजेपी में शामिल होने के बावजूद, नए नियमों से अध्यक्ष सोनू मागो की कुर्सी सुरक्षित हो जाएगी। इसी तरह, बुरहानपुर में कांग्रेस की अनीता यादव, जो केवल 1 वोट से जीती थीं, अब नए नियमों की वजह से अपनी कुर्सी बचा सकेंगी।

मध्य प्रदेश सरकार ने नगर निगम अध्यक्षों की कुर्सी को सुरक्षित रखने के लिए नियमों में संशोधन करने का फैसला किया है। यह बदलाव विपक्ष और निर्दलीय पार्षदों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया को कठिन बना देगा, जिससे राज्य के 16 नगर निगमों के अध्यक्षों की स्थिति अधिक स्थिर हो जाएगी।

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