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Thursday, September 19, 2024

देश में 1967 तक एक साथ चुनाव होते थे, ‘वन इलेक्शन’; इसके फायदे और नुकसान समझिए

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2020 में पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में कहा था, “वन नेशन वन इलेक्शन सिर्फ चर्चा का विषय नहीं, बल्कि भारत की जरूरत है। बार-बार चुनाव होने से विकास कार्यों में रुकावट आती है।” करीब चार साल बाद, 18 सितंबर 2024 को मोदी कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब इसका बिल शीतकालीन सत्र (नवंबर-दिसंबर) में संसद में पेश किया जाएगा।

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि यह चुनाव दो चरणों में होंगे। पहले चरण में लोकसभा और सभी विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे, जबकि दूसरे चरण में सभी निकाय चुनाव होंगे। यदि किसी राज्य की विधानसभा समय से पहले भंग होती है, तो बचे हुए कार्यकाल के लिए चुनाव कराए जाएंगे, ताकि सभी चुनाव एक साथ हो सकें।

वन नेशन वन इलेक्शन क्या है?

इसका अर्थ है पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराना। यानी मतदाता एक ही दिन या चरणबद्ध तरीके से लोकसभा और विधानसभा के लिए अपना वोट डालेंगे। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे। लेकिन 1968-69 में कुछ विधानसभाओं के भंग हो जाने और 1970 में लोकसभा भंग होने से एक साथ चुनाव की परंपरा टूट गई।

सरकार की अब तक की तैयारी

2014 में मोदी सरकार के आने के बाद इस मुद्दे पर चर्चा शुरू हुई। दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया कि एक साथ चुनाव से करोड़ों रुपये की बचत हो सकती है और विकास कार्यों में आचार संहिता की वजह से रुकावट नहीं आएगी। 2019 में पीएम मोदी ने इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाई, जिसमें कुछ दलों ने समर्थन किया, तो कई दलों ने इसका विरोध किया।

सितंबर 2023 में सरकार ने इस मुद्दे पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की। इस कमेटी ने 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट सौंप दी, जिसमें कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं।

वन नेशन वन इलेक्शन के पैनल के सुझाव

  1. सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक बढ़ाया जाए।
  2. हंग असेंबली या अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में पूरे कार्यकाल के लिए नए चुनाव हों।
  3. लोकसभा-विधानसभा चुनाव पहले चरण में और 100 दिनों के भीतर निकाय चुनाव दूसरे चरण में हों।
  4. एकल वोटर लिस्ट और वोटर आईडी कार्ड की व्यवस्था हो।
  5. चुनाव के लिए उपकरण, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की अग्रिम योजना बनाई जाए।

क्या इसे लागू करना संभव है?

विशेषज्ञों के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 368(2) के तहत संशोधन के लिए संसद और कम से कम 50% राज्यों की सहमति जरूरी होगी। कुछ नॉन-BJP शासित राज्य इसका विरोध कर सकते हैं, जिससे इसे लागू करना मुश्किल हो सकता है। यदि इसे लागू किया जाता है तो कुछ राज्यों में हाल ही में बनी सरकारों को बर्खास्त करना पड़ सकता है, जो एक बड़ा विवाद खड़ा कर सकता है।

सरकार की मंशा क्या है?

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं, तो मतदाताओं के एक ही पार्टी को वोट देने की संभावना बढ़ जाती है। इसके पीछे सरकार की रणनीति यह हो सकती है कि इससे उन्हें एक मजबूत चुनावी लाभ मिले, खासकर उन राज्यों में जहां PM मोदी की लोकप्रियता अधिक है।

समर्थन और विरोध के तर्क

समर्थन में:
वन नेशन वन इलेक्शन से चुनाव पर खर्च कम होगा, आचार संहिता के बार-बार लागू होने से बचा जा सकेगा, और विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी। ओडिशा इसका एक सफल उदाहरण है, जहां 2004 से विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होते आए हैं और नतीजे भी भिन्न रहे हैं।

विरोध में:
राज्य और केंद्र के मुद्दे अलग-अलग होते हैं, और एक साथ चुनाव होने से मतदाताओं के फैसलों पर प्रभाव पड़ सकता है। यदि लोकसभा भंग हो जाती है, तो अलग-अलग चुनावों की स्थिति फिर से उत्पन्न हो सकती है। साथ ही, बार-बार चुनाव सरकार को जवाबदेह बनाते हैं, जो एक साथ चुनाव में कम हो सकता है।

वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने की प्रक्रिया

संविधान में कई संशोधनों की आवश्यकता होगी, जिसमें जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 और लोकसभा व विधानसभा संचालन के नियमों में बदलाव शामिल हैं। विधि आयोग ने 2018 में इसे लागू करने के लिए संशोधनों का विवरण प्रस्तुत किया था।

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