ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने हाल ही में एक सरकारी स्कूल में मिड-डे मील की गुणवत्ता का औचक निरीक्षण किया, जो अब सुर्खियों में है। इस निरीक्षण के दौरान मंत्रीजी ने जब भोजन का स्वाद चखा, तो आलू की सब्जी में आलू नदारद देखकर वे बेहद नाराज हो गए। ग्वालियर के डीआरपी लाइन स्थित सरकारी स्कूल में पहुंचे मंत्री प्रद्युम्न सिंह ने बच्चों से बातचीत के बाद मध्यान्ह भोजन की गुणवत्ता को परखने का निर्णय लिया। जब उन्हें आलू की सब्जी परोसी गई, तो उन्होंने बर्तन में आलू की तलाश शुरू की। परंतु उन्हें केवल पानी दिखाई दिया। साथ ही दाल की स्थिति भी बेहद खराब थी, जो पानी की तरह पतली थी। इस घटिया गुणवत्ता को देखकर मंत्रीजी का गुस्सा फूट पड़ा।
मंत्री की प्रतिक्रिया… शिक्षा विभाग की भूमिका
इस स्थिति पर मंत्रीजी ने तुरंत जिला पंचायत के CEO से फोन पर बातचीत की और गुणवत्ताहीन भोजन परोसे जाने के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने स्पष्ट किया कि बच्चों को पौष्टिक और गुणवत्तापूर्ण भोजन मिलना चाहिए और इस मामले में सुधार की आवश्यकता है। यह पूरा घटनाक्रम सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है और लोग इस पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के इस कदम ने स्कूल शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह स्पष्ट होता है कि मिड-डे मील कार्यक्रम की निगरानी में लापरवाही बरती जा रही है। सवाल यह है कि स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह इस गंभीर मामले की अनदेखी क्यों कर रहे हैं? क्या उन्हें इस स्थिति की जानकारी नहीं थी?
स्कूल शिक्षा मंत्री सरकार की करा रहें किरकरी
स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया है, जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा है, “आप मेहमान बनकर आओगे तो क्या घर पर कब्जा करोगे?” इस बयान को लेकर कांग्रेस पार्टी ने भाजपा सरकार पर तीखा हमला किया है, जिससे चर्चा का दौर शुरू हो गया है। यह बयान पहली बार विवाद में नहीं आया है। इससे पहले, सिवनी के एक स्कूल में बरसात के कारण छत टपकने की घटना पर जब शिक्षकों ने बच्चों की सुरक्षा के लिए प्लास्टिक लगाया, तो मंत्री ने इसे “रील बनाने के चक्कर” का मामला करार दिया। उन्होंने कहा कि यह वीडियो कोई नई घटना नहीं है और इसके पीछे भ्रष्ट तंत्र का हाथ है। इन बयानों से यह स्पष्ट है कि शिक्षा विभाग की स्थिति गंभीर है। मिड-डे मील की गुणवत्ता पर उठे सवाल और अब मंत्री के विवादास्पद बयान, ये सब मिलकर सरकार की छवि को धूमिल कर रहे हैं। उदय प्रताप सिंह के बयानों और मिड-डे मील की गुणवत्ता पर उठे सवालों ने एक बार फिर से शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं।
इस घटनाक्रम ने केवल सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए हैं, बल्कि यह बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर भी गहरा असर डाल सकता है। यदि मिड-डे मील की गुणवत्ता में सुधार नहीं किया गया, तो यह बच्चों की सेहत और पोषण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का यह औचक निरीक्षण इस बात का प्रतीक है कि सरकार बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर है, लेकिन इसे वास्तविकता में बदलने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। यह समय है कि शिक्षा विभाग और अन्य संबंधित अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारियों का सही ढंग से निर्वहन करना होगा, ताकि बच्चों को उनके अधिकार के अनुसार गुणवत्तापूर्ण भोजन मिल सके।