मध्य प्रदेश में जज बनने का सपना देख रहे हजारों विधि स्नातकों के लिए बड़ी राहत आई है। अब सिविल न्यायाधीश बनने के लिए 3 साल की प्रैक्टिस की अनिवार्यता को सुप्रीम कोर्ट ने समाप्त कर दिया है। इस फैसले ने उन युवाओं के लिए नया रास्ता खोल दिया है, जो सीधे स्नातक के बाद न्यायिक सेवा में प्रवेश करना चाहते हैं।
क्या था पुराना नियम?
मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा भर्ती के नियमों में 23 जून 2023 को एक संशोधन किया गया था, जिसमें सिविल न्यायाधीश (प्रवेश-स्तर) की परीक्षा में बैठने के लिए न्यूनतम 3 साल की वकालत का अनुभव अनिवार्य किया गया था। यह संशोधित नियम उच्च न्यायालय द्वारा भी बरकरार रखा गया था, जिसके बाद हाईकोर्ट ने उन उम्मीदवारों की भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी, जो इस नए नियम के तहत पात्र नहीं थे।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए तीन साल की प्रैक्टिस की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया। न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने याचिकाकर्ताओं के तर्कों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें इस अनिवार्यता को लागू करने का निर्देश दिया गया था। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह नियम कई उम्मीदवारों के लिए न्यायिक सेवा में प्रवेश को प्रतिबंधित कर रहा था।
न्यायिक सेवा भर्ती की प्रक्रिया पर असर
इस संशोधन से पहले 17 नवंबर 2023 को एक विज्ञापन जारी किया गया था, जिसमें केवल उन विधि स्नातकों को आवेदन करने की अनुमति दी गई थी, जो 3 साल की प्रैक्टिस पूरी कर चुके थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश ने सभी विधि स्नातकों को सिविल न्यायाधीश की प्रारंभिक परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी है। इसका मतलब है कि अब नए नियमों के तहत बिना प्रैक्टिस के भी सीधे स्नातक के बाद न्यायिक सेवा की परीक्षा में बैठने का मौका मिलेगा।
फैसले से उम्मीदवारों में खुशी
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मध्य प्रदेश के न्यायिक सेवा में जाने की चाह रखने वाले युवाओं के बीच खुशी का माहौल है। अब वे बिना वकालत का अनुभव किए भी न्यायिक सेवाओं में प्रवेश कर सकेंगे, जो उनके करियर की दिशा को नई गति देगा।
यह फैसला उन छात्रों के लिए बेहद अहम है, जो तुरंत अपने कानूनी ज्ञान का इस्तेमाल कर न्यायिक सेवाओं में योगदान देना चाहते हैं।