भोपाल: मध्य प्रदेश के बुधनी विधानसभा क्षेत्र में किसानों का आंदोलन तेज हो गया है। पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के क्षेत्र के किसान अब चुनावी बहिष्कार के रास्ते पर उतर आए हैं। किसानों ने ऐलान किया है कि वे आगामी उपचुनाव का बहिष्कार करेंगे और इसके समर्थन में 30 सितंबर को मशाल रैली भी निकालेंगे।
किसान संगठनों का बड़ा निर्णय
भैरुंदा स्थित कृषि उपज मंडी परिसर में आयोजित किसान संगठन की बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि बुधनी विधानसभा क्षेत्र के आगामी उपचुनाव का किसान अपने परिवारों सहित बहिष्कार करेंगे। इस बैठक की अध्यक्षता ‘किसान स्वराज संगठन’ के ब्लॉक अध्यक्ष भगवान सिंह यदुवंशी ने की। बैठक के बाद किसानों ने एसडीएम मदन सिंह रघुवंशी को ज्ञापन सौंपते हुए अपनी मांगें रखीं। किसानों ने आरोप लगाया कि उन्हें जबरदस्ती डीएपी के साथ नैनो यूरिया दिया जा रहा है, जो उनकी फसलों के लिए पर्याप्त नहीं है।
मशाल रैली और बढ़ते आंदोलन
किसानों की मांगों के समर्थन में 30 सितंबर को भैरुंदा में एक विशाल मशाल रैली निकाली जाएगी। इसके अलावा, पहले भी किसानों ने 2000 ट्रैक्टरों के साथ एक बड़ी रैली आयोजित की थी, जिसमें उन्होंने अपने हक के लिए प्रदर्शन किया। संयुक्त किसान मोर्चा और किसान स्वराज संगठन के नेतृत्व में आयोजित इस रैली में किसानों ने सरकार से मांग की थी कि सोयाबीन पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 6000 रुपये प्रति क्विंटल किया जाए। इसके अलावा गेहूं पर 3000 रुपये, धान पर 3100 रुपये और मक्का पर 2500 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी की मांग की जा रही है।
18 साल में पहली बार किसानों का इतना बड़ा प्रदर्शन
शिवराज सिंह चौहान 2005 से लगातार बुधनी विधानसभा के विधायक रहे हैं और 2023 के चुनावों में उन्होंने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की थी। पिछले 18 सालों में बुधनी विधानसभा में कभी भी किसानों का ऐसा बड़ा प्रदर्शन देखने को नहीं मिला था। लेकिन अब, उनके केंद्रीय मंत्री बनने के बाद से क्षेत्र के किसान आंदोलित हो गए हैं और अपनी मांगों के लिए सड़क पर उतरने लगे हैं। किसानों का कहना है कि सरकार उनकी मांगों को अनसुना कर रही है, इसलिए उन्होंने उपचुनाव के बहिष्कार का फैसला लिया है।
किसानों की मांगें और आंदोलन की दिशा
किसान लंबे समय से फसलों के उचित मूल्य और एमएसपी में बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं। उनकी मुख्य मांगों में सोयाबीन, गेहूं, धान और मक्का की एमएसपी में सुधार शामिल है। किसानों का कहना है कि बढ़ती लागत और घटते दामों के कारण वे अपनी फसलों से लाभ नहीं कमा पा रहे हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और खराब होती जा रही है।
30 सितंबर को प्रस्तावित मशाल रैली इस आंदोलन की एक और बड़ी कड़ी होगी, जिसमें किसान अपनी मांगों को लेकर एकजुट होकर प्रदर्शन करेंगे। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार किसानों की इन मांगों पर क्या प्रतिक्रिया देती है, और क्या यह आंदोलन बुधनी के राजनीतिक परिदृश्य पर कोई प्रभाव डाल पाएगा।