भोपाल: मध्य प्रदेश में भाजपा के भीतर पुराने और नए नेताओं के बीच चल रही अंदरूनी कलह मुख्यमंत्री मोहन यादव के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। उन्हें इस खींचतान में संतुलन बनाना मुश्किल हो रहा है। पार्टी के भीतर यह मतभेद उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद से और भी अधिक स्पष्ट हो गए हैं।
पार्टी में पुराने और नए नेताओं की खींचतान
हाल के हफ्तों में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच मतभेद खुलकर सामने आए हैं। सागर में आयोजित बुंदेलखंड औद्योगिक सम्मेलन के दौरान, मंच पर उचित जगह न मिलने से भाजपा के वरिष्ठ नेता गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह कार्यक्रम से नाराज होकर चले गए। इस घटना ने पार्टी के भीतर वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी को उजागर किया। दोनों नेताओं के मंच छोड़ने के बाद, गोविंद सिंह राजपूत और शैलेंद्र जैन जैसे नेता मुख्यमंत्री के करीब देखे गए, जिसने अंदरूनी विवाद को और हवा दी।
शिक्षा मंत्री के बयान से विवाद
एक अन्य घटना में, शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह के अतिथि शिक्षकों को नियमित न करने के बयान ने भाजपा के भीतर और बाहरी तौर पर विरोध को जन्म दिया। 2023 विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज सिंह चौहान ने गेस्ट टीचर्स को नियमित करने का वादा किया था, लेकिन वादा पूरा न होने पर ये शिक्षक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उदय प्रताप सिंह के बयान से भाजपा के कई पुराने नेताओं में असंतोष और गहरा गया है।
टीकमगढ़ विवाद और केंद्रीय मंत्री खटीक पर हमले
टीकमगढ़ से भाजपा सांसद वीरेंद्र खटीक पर भी पार्टी के चार नेताओं ने हमला बोला। उन्होंने खटीक पर कांग्रेस के पूर्व उम्मीदवार लोकेंद्र सिंह को सांसद प्रतिनिधि बनाने पर नाराजगी जताई, जो पार्टी के भीतर मतभेद को और बढ़ाता है। इस विवाद के बाद प्रदेश अध्यक्ष वी.डी. शर्मा को हस्तक्षेप करना पड़ा और नेताओं से सार्वजनिक मंच पर एक-दूसरे पर हमला न करने की सलाह दी गई।
रीवा विवाद और ब्राह्मण नेतृत्व की खींचतान
रीवा में सांसद जनार्दन मिश्रा और भाजपा विधायक सिद्धार्थ तिवारी के बीच विवाद भी सामने आया। मिश्रा ने कांग्रेस नेता और तिवारी के दादा श्रीनिवास तिवारी पर तीखा हमला किया, जिससे विंध्य क्षेत्र में ब्राह्मण नेतृत्व के बीच विवाद और बढ़ गया। सिद्धार्थ तिवारी ने इस पर आपत्ति जताई, जिससे दोनों नेताओं के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई।
पुराने और नए कार्यकर्ताओं में सामंजस्य की कमी
भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं और कांग्रेस से आए नए नेताओं के बीच सामंजस्य की कमी है, जो पार्टी के अंदर कलह का प्रमुख कारण है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि नए कार्यकर्ताओं को बोर्ड और निगमों में नियुक्ति मिलने के कारण पुराने कैडर ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी में शामिल होने के बाद से ये मतभेद बढ़ते गए हैं।
मुख्यमंत्री मोहन यादव की चुनौती
मुख्यमंत्री मोहन यादव के लिए पार्टी के भीतर संतुलन बनाना मुश्किल साबित हो रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विपरीत, जो नाराज नेताओं को समझाने और संतुलन बनाने में माहिर थे, यादव को इस कला में अभी सीखने की जरूरत है। शिवराज अपने कार्यकाल में व्यक्तिगत रूप से नेताओं को मनाने के लिए उनके घर भी जाया करते थे। हांलाकि मुख्यमंत्री मोहन यादव के लिए पुराने और नए नेताओं के बीच संतुलन बनाने और पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती सबसे बड़ी है।