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Tuesday, October 22, 2024

31 अक्टूबर या 1 नवंबर कब मनाई जाए दिवाली, जाने

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इंदौर। दीपावली 31 अक्टूबर या 1 नवंबर को मनाने के विषय में संशय बना हुआ है। इस बीच, सोमवार को संस्कृत महाविद्यालय रामबाग में शहर के विद्वानों ने एक बार फिर एक नवंबर को दीपावली मनाने को शास्त्र सम्मत बताया। इस बैठक में ज्योतिष के जानकारों के साथ-साथ कई मंदिरों के प्रमुख और धार्मिक संगठनों के सदस्य भी शामिल हुए। विभिन्न शास्त्रों और पंचांगों का उल्लेख करते हुए एकमत से निर्णय लिया गया कि दीपावली कार्तिक अमावस्या के दूसरे दिन, यानी एक नवंबर को मनाई जाएगी।

धर्मशास्त्र के विशेषज्ञ डॉ. विनायक पांडेय ने कहा कि 31 अक्टूबर को चतुर्दशी तिथि शाम चार बजे तक रहेगी, जिसके बाद कार्तिक अमावस्या शुरू होगी, जो एक नवंबर को शाम 6:17 बजे तक रहेगी। इस स्थिति में ज्योतिष ग्रंथ ‘पुरुषार्थ चिंतामणि’ में स्पष्ट उल्लेख है कि दूसरे दिन की अमावस्या का पूजन किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि धर्मशास्त्र के अनुसार, यदि दोनों दिन अमावस्या प्रदोषकाल को स्पर्श कर रही हो, तो दूसरे दिन की तिथि को स्वीकार करना चाहिए। 1 नवंबर को तुला राशि में सूर्य और चंद्रमा 15 डिग्री पर होंगे, जो महालक्ष्मी पूजन के लिए शुभ योग है। इस दिन पुष्कर योग और स्वाति नक्षत्र भी होगा।

डॉ. पांडेय ने यह भी बताया कि मध्यरात्रि में पूजन कैसे किया जा सकता है, इसका निर्णय भी आगम शास्त्र में मिलता है। पूजा की दो पद्धतियां होती हैं—काली क्रम और श्री क्रम। एक नवंबर को दीपावली मनाने का निर्णय श्री क्रम से पूजन के लिए लिया गया है, जबकि पहले दिन मध्यरात्रि को पूजन काली क्रम के अनुसार होगा। उस दिन श्यामा, भगवती कामाख्या और भगवती काली का पूजन किया जाएगा।

काशी के विद्वानों ने भी 31 अक्टूबर को दीपावली मनाने का समर्थन किया है। उज्जैन के विद्वान पहले ही 31 अक्टूबर को दीपावली मनाने की बात कह चुके हैं। बीएचयू के विश्व पंचांग के समन्वयक प्रो. विनयकुमार पांडे और श्रीकाशी विद्वत परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रो. रामचंद्र पांडेय ने कहा कि पारंपरिक गणित से निर्मित पंचांगों में कोई भेद नहीं है। सभी पंचांगों में अमावस्या का आरंभ 31 अक्टूबर को सूर्यास्त से पहले होता है और एक नवंबर को सूर्यास्त के पूर्व समाप्त हो जाता है। इससे पूरे देश में पारंपरिक सिद्धांतों के अनुसार 31 अक्टूबर को दीपावली मनाना सिद्ध होता है।

उपस्थित विद्वानों में शामिल थे:आचार्य कल्याणदत्त शास्त्री, आचार्य रामचंद्र शर्मा वैदिक, खजराना गणेश मंदिर के पुजारी अशोक भट्ट, रणजीत हनुमान मंदिर के पुजारी दीपेश व्यास, और संस्कृत महाविद्यालय के गोपालदास बैरागी।

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