Pregnancy Baby Development: गर्भावस्था हर महिला के जीवन का सबसे नाजुक और महत्वपूर्ण समय होता है। इस दौरान महिला की हर आदत और दिनचर्या का सीधा असर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की सेहत पर पड़ता है। कई बार महिलाएं अनजाने में कुछ ऐसी गलतियां कर बैठती हैं जो शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित कर सकती हैं। इस समय सावधानी बेहद जरूरी होती है ताकि भविष्य में कोई पछतावा न हो। डॉक्टरों के अनुसार कुछ सामान्य सी लगने वाली बातें भी बच्चे के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं। इसलिए जागरूक रहना और सही सलाह लेना बेहद जरूरी है।
पोषक आहार में लापरवाही से रुक सकता है विकास
डॉ सलोनी चड्ढा बताती हैं कि गर्भावस्था में महिला को दो लोगों के लिए खाना होता है इसलिए शरीर को अतिरिक्त पोषण की आवश्यकता होती है। कई महिलाएं इस बात को गंभीरता से नहीं लेतीं और भूख न लगने पर खाना टाल देती हैं या पोषक तत्वों को नज़रअंदाज़ कर देती हैं। इस कारण गर्भ में पल रहे बच्चे को जरूरी आयरन कैल्शियम फोलिक एसिड और विटामिन नहीं मिल पाते जिससे उसका शारीरिक और मानसिक विकास रुक सकता है। गर्भवती महिला को रोजाना हरी सब्जियां ताजे फल दूध दालें ड्राय फ्रूट्स और फोलिक एसिड युक्त आहार लेना चाहिए। साथ ही डॉक्टर से समय समय पर डाइट की सलाह जरूर लेते रहना चाहिए ताकि कोई पोषक तत्व न छूट जाए।
नींद की कमी से हार्मोनल असंतुलन हो सकता है खतरनाक
गर्भावस्था में शरीर को अतिरिक्त आराम की जरूरत होती है। अगर महिला को पर्याप्त नींद नहीं मिलती तो उसका असर बच्चे के विकास पर पड़ता है। नींद की कमी से मां में चिड़चिड़ापन थकान और ब्लड प्रेशर जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। हार्मोनल बदलाव इस दौरान पहले से ही अधिक होते हैं और नींद की अनियमितता उन्हें और बिगाड़ सकती है जिससे गर्भस्थ शिशु पर भी असर पड़ता है। गर्भवती महिला को दिन में कम से कम 8 से 9 घंटे की नींद जरूर लेनी चाहिए। साथ ही दोपहर में हल्का आराम और रात की नींद का समय तय होना चाहिए। स्क्रीन टाइम कम करना भी बहुत जरूरी होता है जिससे नींद की गुणवत्ता बेहतर हो सके।
तनाव और चिंता से मस्तिष्क विकास पर असर
लगातार तनाव या चिंता गर्भवती महिला और उसके अजन्मे बच्चे दोनों के लिए हानिकारक होती है। तनाव से शरीर में कोर्टिसोल नामक हार्मोन का स्तर बढ़ता है जो शिशु के मस्तिष्क के विकास को रोक सकता है। मानसिक स्थिति का प्रभाव बच्चे की भावनात्मक स्थिति पर भी पड़ता है। इससे बच्चा जन्म के बाद चिड़चिड़ा या असहज हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि गर्भवती महिला सकारात्मक माहौल में रहे और ध्यान योग या अपने पसंदीदा संगीत के माध्यम से तनाव को दूर करे। यदि बहुत अधिक मानसिक दबाव हो तो परिवार से सहयोग लें या काउंसलर से बात करें ताकि समस्या को समय रहते हल किया जा सके।
धूम्रपान शराब और नशा पूरी तरह से वर्जित
अगर कोई महिला गर्भावस्था में धूम्रपान करती है या शराब का सेवन करती है तो इसका सीधा असर बच्चे पर होता है। इससे शिशु का वजन कम हो सकता है समय से पहले प्रसव हो सकता है या कभी कभी गर्भपात की नौबत भी आ सकती है। नशे की आदतें बच्चे के अंगों के विकास में रुकावट डाल सकती हैं और कई बार जन्म के बाद मानसिक विकलांगता का खतरा भी रहता है। केवल नशे से ही नहीं बल्कि ऐसे लोगों के आसपास रहना भी खतरनाक हो सकता है जो धूम्रपान करते हों क्योंकि सेकेंड हैंड स्मोक भी उतना ही हानिकारक होता है। इसलिए इस दौरान सभी प्रकार के नशे से दूर रहना अनिवार्य है।
डॉ सलोनी चड्ढा बताती हैं कि गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से डॉक्टर से जांच कराना और जरूरी दवाएं और सप्लीमेंट लेना बेहद जरूरी होता है। बहुत सी महिलाएं जांच को हल्के में लेती हैं या दवाएं भूल जाती हैं जिससे बच्चे के अंगों के विकास में रुकावट आ सकती है। आयरन कैल्शियम और फोलिक एसिड जैसे पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए डॉक्टर द्वारा दी गई गोलियों को समय पर लेना जरूरी है। हर महीने डॉक्टर से मिलने जाएं ताकि किसी भी जटिलता का समय रहते पता चल सके और उसका इलाज किया जा सके। छोटी सी लापरवाही बड़े खतरे में बदल सकती है।