सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को रिपब्लिक टीवी (Republic TV) के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी (Arnab Goswami’s bail plea) की ओर से दायर अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई हुई. खुदकुशी के लिए उकसाए (Abetment of Suicide) जाने वाले वाले आरोप के मामले में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की बेंच ने सुनवाई की. सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर कोर्ट इस केस में दखल नहीं देता है, तो वो बरबादी के रास्ते पर आगे बढ़ेगा. कोर्ट ने कहा कि ‘आप विचारधारा में भिन्न हो सकते हैं लेकिन संवैधानिक अदालतों को इस तरह की स्वतंत्रता की रक्षा करनी होगी वरना तब हम विनाश के रास्ते पर चल रहे हैं. अगर हम एक संवैधानिक अदालत के रूप में कानून नहीं बनाते और स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करते हैं तो कौन करेगा?’
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘हो सकता है कि आप उनकी (अर्णब) विचारधारा को पसंद नहीं करते. मुझ पर छोड़ें, मैं उनका चैनल नहीं देखता लेकिन अगर हाईकोर्ट जमानत नहीं देती है तो नागरिक को जेल भेज दिया जाता है. हमें एक मजबूत संदेश भेजना होगा. पीड़ित निष्पक्ष जांच का हकदार है. जांच को चलने दें, लेकिन अगर राज्य सरकारें इस आधार पर व्यक्तियों को लक्षित करती हैं तो एक मजबूत संदेश को बाहर जाने दें.’
कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि ‘एक ने आत्महत्या की है और दूसरे के मौत का कारण अज्ञात है. गोस्वामी के खिलाफ आरोप है कि मृतक के कुल 6.45 करोड़ बकाया थे और गोस्वामी को 88 लाख का भुगतान करना था. एफआईआर का कहना है कि मृतक ‘मानसिक तड़पन’ या मानसिक तनाव से पीड़ित था? साथ ही 306 के लिए वास्तविक उकसावे की जरूरत है. क्या एक को पैसा दूसरे को देना है और वे आत्महत्या कर लेता है तो ये उकसावा हुआ? क्या किसी को इसके लिए जमानत से वंचित करना न्याय का मखौल नहीं होगा?
कोर्ट ने कहा कि ‘हमारा लोकतंत्र असाधारण रूप से लचीला है. पॉइंट है कि सरकारों को उन्हें (टीवी पर ताना मारने को) अनदेखा करना चाहिए. आप (महाराष्ट्र) सोचते हैं कि वे जो कहते हैं, उससे चुनाव में कोई फर्क पड़ता है?’