इंदौर: मध्य प्रदेश के इंदौर संभाग में एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज रेप के मामलों में से अधिकांश में न्यायालय में आरोप साबित नहीं हो पा रहे हैं। पिछले डेढ़ साल के दौरान, 1 जनवरी 2023 से 30 जून 2024 के बीच इंदौर संभाग के आठ जिलों में दर्ज किए गए 52 दुष्कर्म मामलों में से 38 मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया गया। इसका मुख्य कारण यह है कि पीड़िताएं और उनके रिश्तेदार अक्सर अपने आरोपों से मुकर गए या पक्षद्रोही (होस्टाइल) हो गए।
बड़वानी को छोड़कर बाकी जिलों में सजा का अभाव
इंदौर संभाग के अजाक एसपी कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पिछले डेढ़ साल के दौरान जिन 14 मामलों में सजा सुनाई गई, उनमें से 12 मामले बड़वानी जिले से थे। जबकि इंदौर, धार, झाबुआ, अलीराजपुर और खरगोन जिलों में एससी-एसटी एक्ट के तहत एक भी मामले में सजा नहीं हुई है। खंडवा और बुरहानपुर में सिर्फ एक-एक मामले में सजा सुनाई गई।
पीड़िताओं के आरोपों से मुकरने की वजहें
अधिकांश मामलों में देखा गया है कि पीड़िताएं अपने आरोपों से इसलिए पलट जाती हैं क्योंकि उन पर परिवार या समाज का दबाव होता है। कुछ मामलों में, पीड़िताओं ने कोर्ट में बयान दिया कि उनके परिवार ने उन्हें प्रेमी पर झूठा दुष्कर्म का आरोप लगाने के लिए मजबूर किया था। यह भी देखने को मिला है कि परिवारिक विवादों के चलते पीड़िताओं ने प्रेमी पर केस दर्ज कराए थे, जो बाद में अदालत में झूठे साबित हुए।
केस स्टडी: निर्दोष युवकों को जेल की सजा झेलनी पड़ी
- बाणगंगा केस: 20 वर्षीय युवक को एक मामले में 11 महीने जेल में रहना पड़ा। पीड़िता ने बाद में कोर्ट में स्वीकार किया कि उसने परिवार के दबाव में झूठा आरोप लगाया था।
- सांवेर का मामला: 2018 में दर्ज दुष्कर्म के एक केस में पीड़िता ने कोर्ट में बताया कि वह आरोपी के साथ सहमति से गई थी, और परिजनों के दबाव में शिकायत दर्ज कराई थी।
- झारखंड और इंदौर में दर्ज दोहरी शिकायत: एक युवक के खिलाफ झारखंड और इंदौर में दर्ज दुष्कर्म के मामलों में पीड़िता ने अंततः अपने बयान पलट दिए, जिससे आरोपी को बरी कर दिया गया।
मुआवजे पर उठे सवाल
एससी-एसटी एक्ट के तहत दुष्कर्म के मामलों में पीड़िताओं को मुआवजे के रूप में 5 लाख रुपये तक की राशि दी जाती है। एफआईआर के बाद 50% राशि, चालान पेश होने पर 25% और मामले के निपटारे के बाद शेष 25% राशि जारी की जाती है। लेकिन जब मामले में आरोप साबित नहीं होते, तब मुआवजे की प्रक्रिया पर भी सवाल उठते हैं।
विशेषज्ञ की राय
पूर्व न्यायमूर्ति जस्टिस शांतनु केमकर का कहना है कि व्यक्तिगत लाभ के लिए पक्षद्रोही होने वाले मामलों में मुआवजे की राशि वापस लेने का प्रावधान होना चाहिए। इसके अलावा, झूठे आरोपों से बरी हुए व्यक्तियों को उचित मुआवजा देने का प्रावधान भी कानून में शामिल किया जाना चाहिए ताकि उन्हें न्याय मिल सके।
आंकड़े बताते हैं स्थिति की गंभीरता
- 237 नए मामले दर्ज: इंदौर संभाग में डेढ़ साल के दौरान एससी-एसटी एक्ट के तहत दुष्कर्म के 237 नए मामले दर्ज किए गए।
- 14 मामलों में सजा: 52 मामलों के फैसले में सिर्फ 14 में सजा हुई, जिनमें से अधिकांश बड़वानी जिले के थे।
- करीब 90 लाख का मुआवजा जारी: इस अवधि में पीड़िताओं को लगभग 89.60 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया है।
इंदौर संभाग में एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज दुष्कर्म मामलों की स्थिति चिंता का विषय बनी हुई है। आरोपियों के बरी होने की दर उच्च है और पीड़िताओं का अपने बयानों से मुकरना इस समस्या को और गंभीर बना देता है। मामलों में सख्ती से जांच और मुआवजे की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है ताकि न्याय व्यवस्था में सुधार हो सके।