मध्य प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव ने एक बार फिर अपनी बेबाक टिप्पणी से सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। इस बार उन्होंने समाज में बढ़ती आपराधिक घटनाओं, खासकर अबोध बच्चियों के साथ हो रहे दुष्कर्मों को लेकर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने दशहरे पर रावण दहन के औचित्य पर सवाल उठाते हुए यह पूछा है कि क्या हम वाकई रावण दहन के अधिकारी हैं?
पोस्ट में उठाए अहम सवाल
भार्गव ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि एक तरफ देश भर में नवरात्रि के दौरान कन्या पूजन और देवी पूजन हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ अखबारों और टीवी चैनलों पर अबोध बच्चियों के साथ दुष्कर्म और उनकी हत्या की खबरें भी लगातार आ रही हैं। उन्होंने इस विरोधाभास पर चिंता जताई और कहा कि हमें पहले अपने भीतर के रावण को मारने की जरूरत है।
रावण का महाज्ञानी और शिवभक्त रूप
भार्गव ने रावण के चरित्र की गहराई पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि रावण एक महाज्ञानी, तपस्वी और शिवभक्त था, जिसने कभी सीता माता का स्पर्श नहीं किया। तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस का हवाला देते हुए, भार्गव ने कहा कि रावण जब भी सीता जी के दर्शन करता था, तो अपनी पत्नी और अन्य परिवार को भी साथ ले जाता था। उन्होंने वर्तमान समाज की तुलना करते हुए कहा कि जिन लोगों को विद्या का ज्ञान नहीं है, वे भी रावण का पुतला जलाते हैं, जबकि असल में रावण से अधिक बुराई अब समाज में फैल चुकी है।
आत्ममंथन की जरूरत
गोपाल भार्गव ने इसे समाज के लिए आत्ममंथन का समय बताया और कहा कि दशहरा का त्योहार अब केवल आतिशबाजी तक सिमट कर रह गया है। उनका मानना है कि जब तक हम अपने भीतर की बुराईयों को खत्म नहीं करेंगे, तब तक रावण दहन करना महज एक दिखावा होगा।
कानूनी सख्ती और बढ़ते अपराध
भार्गव ने यह भी कहा कि जब से दुष्कर्म के अपराधियों के खिलाफ कड़ी सजा और मृत्युदंड का कानून लागू हुआ है, तब से ऐसी घटनाओं में और वृद्धि देखने को मिली है। उनका इशारा इस ओर था कि सिर्फ कड़े कानून बनाने से समाज नहीं बदलता, बल्कि आत्ममंथन और संस्कारों की भी जरूरत है।
सियासी मायने
गोपाल भार्गव के इस बयान से राजनीतिक गलियारों में कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। हालांकि, भार्गव भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन उनके इस बयान को सत्ताधारी पार्टी की नीतियों के खिलाफ भी देखा जा सकता है। भार्गव के बयान ने समाज और राजनीति में हो रहे विरोधाभासों पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं, जो आने वाले समय में एक बड़ी बहस का मुद्दा बन सकते हैं।
भार्गव का बयान दशहरे के मूल उद्देश्य और समाज में व्याप्त बुराइयों पर गहरी चोट करता है। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि जब तक समाज अपने भीतर की बुराइयों को समाप्त नहीं करता, तब तक रावण दहन का कोई वास्तविक औचित्य नहीं है।