जबलपुर। नवरात्र के पवित्र दिनों में अधिकांश लोग पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। इस दौरान शुभ कार्य करने को विशेष रूप से महत्व दिया जाता है। हालांकि, इस बार एक अनोखी प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। कई गर्भवती महिलाएं और उनके परिजन इन दिनों प्रसव टालने का प्रयास कर रहे हैं ताकि घर में पूजा-पाठ प्रभावित न हो। जबलपुर के अस्पतालों की गायनिक ओपीडी में इस तरह के मामले लगातार सामने आ रहे हैं, जहां महिलाएं डॉक्टरों से प्रसव की तारीख आगे बढ़ाने का अनुरोध कर रही हैं।
धार्मिक मान्यताओं का असर
गर्भवती महिलाएं और उनके परिजन नवरात्र के दौरान बच्चे का जन्म नहीं चाहते क्योंकि इन दिनों किसी के घर सोर (बच्चे के जन्म के बाद होने वाले धार्मिक संस्कार) लगने पर पूजा-पाठ, मूर्ति स्पर्श और मंदिर जाने पर प्रतिबंध होता है। ग्वारीघाट की निवासी सुनीता (परिवर्तित नाम) ने बताया कि उनकी डिलीवरी डेट 8 अक्टूबर को है, जो नवरात्र की पंचमी के दिन पड़ती है। उन्होंने डॉक्टर से अनुरोध किया है कि उनका सीजर नवरात्र के बाद, अष्टमी के दिन कराया जाए।
पाटन की निवासी काजल (परिवर्तित नाम) की भी डिलीवरी नवरात्र के दिनों में है। वह भी नवरात्र के बीच प्रसव कराने से परहेज कर रही हैं और डॉक्टरों से तारीख आगे बढ़ाने की मांग कर रही हैं। हालांकि, स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. कावेरी शॉ का कहना है कि यह परिस्थिति पर निर्भर करता है। यदि लेबर पेन शुरू हो जाता है, तो प्रसव कराना ही पड़ेगा, लेकिन जहां संभव हो, वहां तारीखों में बदलाव किया जा सकता है।
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समय भी टाले गए थे प्रसव
यह धार्मिक भावनाओं के चलते प्रसव की तारीखों को आगे बढ़ाने का नया मामला नहीं है। भोपाल की रुची सोनी ने बताया कि उनकी डिलीवरी की तारीख 19-20 जनवरी को तय थी, लेकिन उन्होंने अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन 22 जनवरी को प्रसव कराने का निर्णय लिया। उनका बेटा 22 जनवरी को पैदा हुआ, जिससे उन्हें बहुत खुशी मिली कि उनके बेटे का जन्म इस विशेष दिन पर हुआ।
डॉक्टरों के लिए चुनौती
इस धार्मिक आस्था को देखते हुए डॉक्टरों के सामने एक नई चुनौती आ खड़ी हुई है। स्त्री रोग विशेषज्ञ असमंजस में हैं कि वे गर्भवती महिलाओं को कैसे समझाएं कि प्रसव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और इसे धार्मिक मान्यताओं के आधार पर टालना हमेशा संभव नहीं है। कई मामलों में, महिलाओं का लेबर पेन समय से पहले शुरू हो सकता है, जिसके कारण तत्काल प्रसव कराना आवश्यक हो जाता है।
नवरात्र के दौरान इस प्रकार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जहां महिलाएं और उनके परिवार धार्मिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए प्रसव की तारीखों को बदलवाने की कोशिश कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति डॉक्टरों के लिए एक नई चुनौती बनकर उभर रही है।