इंदौर। इंदौर कलेक्टर कार्यालय में मंगलवार को जनसुनवाई में बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। किसी को इलाज तो किसी को आवास के लिए शासकीय सहायता की जरूरत थी। कलेक्टर इलैया राजा टी ने जरूरतमंदों को समुचित राहत राशि स्वीकृत की। इनमें से आवेदक महेंद्र पगारे अपनी चार साल की बेटी लीजा के लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत के बारे में बताया। इसमें लगभग 17 लाख रुपये खर्च होंगे। इसका इलाज इंदौर के एक अस्पताल में होना है, परंतु वह आयुष्मान योजना के अंतर्गत लिवर ट्रांसप्लांट के लिए चिह्नित नहीं है। इस पर कलेक्टर ने तुरंत भोपाल चर्चा की और लिवर ट्रांसप्लांट के लिए अनस्पेशिफाइड पैकेज के अंतर्गत पांच लाख रुपये की राशि आयुष्मान भारत योजना से स्वीकृत करने की कार्रवाई की।
जनसुनवाई में पहुंचे दृष्टिहीन दंपती केदार पटेल और अनिता को प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत फ्लैट आवंटित किया गया। मकान की पहली किस्त और अन्य औपचारिकताओं के लिए रेडक्रास से एक लाख रुपये की मदद स्वीकृत की गई। जनसुनवाई में वृद्ध महिला गंगा वर्मा भी पहुंची। उनका बड़ा बेटा लंबे समय से बीमार है। निजी अस्पताल में इलाज चल रहा है और आपरेशन में लगभग साढ़े नौ लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। इनमें से साढ़े छह लाख रुपये का भुगतान कर दिया गया है। महिला ने बताया कि शेष राशि जमा करने की व्यवस्था हमारे पास बिल्कुल भी नहीं है। आर्थिक स्थिति खराब है, अभी और भी इलाज होना है। कलेक्टर के निर्देश पर स्वास्थ्य अधिकारियों ने अस्पताल प्रबंधक से चर्चा कर बकाया राशि का बिल माफ कराया। साथ ही कलेक्टर ने कहा कि इनका इलाज अब सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल में निश्शुल्क कराया जाए।
जनसुनवाई में गोपाल खंडेलवाल और उनकी पत्नी सीमा भी पहुंची। इन्होंने कलेक्टर को व्यथा बताई कि बैंक से लोन लेकर पंचवटी कालोनी में मकान बनाया था। मकान के लिए लगभग 23 लाख रुपये का लोन लिया था। इसमें से अधिकांश राशि 17 किस्तों में जमा कर दी। शेष राशि ब्याज सहित बकाया होने पर बैंक ने हमारा मकान कुर्क कर लिया और ताला लगा दिया। हम बेघर हो गए। हमने बैंक में संपर्क किया तो ब्याज सहित बहुत ज्यादा बकाया राशि शेष होना बताया। हमने कई जगह आवेदन दिए लेकिन निराकरण नहीं हुआ। इस बीच बैंक ने मकान नीलाम करने की कार्रवाई भी शुरू कर दी। इस दौरान हम डीआरटी (डेफ्थ रिकवरी ट्रिब्यूनल) जबलपुर गए और आवेदन लगाया। वहां से हमें इसी वर्ष फरवरी माह में स्थगन मिल गया। इसके बावजूद मकान का ताला खोलने और कब्जा देने की प्रक्रिया नहीं की गई। कलेक्टर ने दस्तावेजों का परीक्षण करने के बाद निर्देश दिए कि तत्काल ही मकान का ताला खोलकर कब्जा सौंपा जाए। इससे पति-पत्नी ने राहत की सांस ली।