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Sunday, November 17, 2024

MP निकाय चुनाव को लेकर बड़ी खबर, जल्द होगा ये फैसला

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भोपाल। मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव की तैयारियां भी तेज हो गई है। लेकिन चुनाव से पहले महापौर के चयन का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। दरअसल, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष के फेर में फंसा मध्य प्रदेश में महापौर और अध्यक्ष पदों की चुनावी प्रक्रिया का मसला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंच गया है। जबलपुर निवासी डॉ. पीजी नाजपांडे द्वारा एक नई याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है, जिसमें प्रदेश सरकार द्वारा महापौर और अध्यक्ष पदों का चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से कराने के निर्णय को कटघरे में रखा गया है।

 

बता दें कि 1997 से मध्यप्रदेश में महापौर और नगर पालिका और नगर परिषदों में अध्यक्ष पदों पर निर्वाचन प्रत्यक्ष यानि सीधे जनता द्वारा किया जा रहा है। लेकिन साल 2018 में सत्ता में आई कमलनाथ सरकार ने इस फैसले को बदलते हुए महापौर और अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष यानि पार्षदों द्वारा चयन करने का प्रावधान लागू कर दिया। जिसके बाद याचिकाकर्ता पहले हाईकोर्ट पहुंचे थे और बाद में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।इस बीच सत्ता परिवर्तन के बाद शिवराज सरकार ने कमलनाथ सरकार के फैसले को बदला और फिर से चुनाव प्रत्यक्ष तरीके से चुनाव कराने का निर्णय ले लिया। इस आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ले ली गई थी। लेकिन फिर अचानक शिवराज सरकार ने अपने फैसले को बदल दिया और कमलनाथ सरकार वाला फैसला ही लागू कर दिया। यानि फिर से महापौर और अध्यक्ष पद की चयन प्रक्रिया पार्षदों के माध्यम से ही करवाई जाएगी।

 

 

ऐसे में अब डॉ. पीजी नाजपांडे ने इस मामले में एक बार फिर याचिका दायर की है। याचिका में दलील दी गई है कि अप्रत्यक्ष तरीके से महापौर और अध्यक्ष पद का चुनाव कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है और लोकतंत्र के लिहाज से यह गलत है, इसलिए महापौर और अध्यक्ष पद के चुनाव सीधे जनता द्वारा ही करवाए जाए तो सही होगा। ऐसे में माना जा रहा है कि इस याचिका पर जल्द ही सुनवाई हो सकती है। दो साल से भी ज्यादा वक्त से रुके हैं निकाय चुनाव बता दें कि मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव पिछले दो साल से भी ज्यादा समय से रुके हुए हैं। कोरोना की वजह से चुने हुए जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया गया था। एक साल पूरा होने के बाद से निकायों की जिम्मेदारियां प्रशासनिक अधिकारी संभाल रहे हैं। ऐसे में नरवर में चुनाव कराने का फैसला अहम माना जा रहा है।

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