मध्यप्रदेश। मप्र में विधानसभा उपचुनाव की तारीखों को लेकर जारी अनिश्चितता के बीच राज्य सरकार के दो मंत्रियों के भविष्य को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं।यदि 20 अक्टूबर तक यह दोबारा चुनकर विधानसभा में नहीं पहुंचे तो इन्हें पद छोडना होगा। अभी दोनों मंत्री तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत विधायक नहीं हैं। हालांकि अभी तक तो यह भी लग रहा है कि बीस अक्टूबर के पहले राज्य में उपचुनाव संभव नहीं हैं। ऐसे में राज्य सरकार को कोई रास्ता निकालना पडेगा या दोनों को इस्तीफे के बाद फिर से चुने जाने का इंतजार करना होगा।
गौरतलब है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के 22 विधायकों ने मार्च माह में सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थामा था, जिसके बाद कमलनाथ सरकार को सत्ता से बेदखल होना पडा था। भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने 21 अप्रैल को जब अपने मंत्रिमंडल का गठन किया था तो राजनीतिक तकाजों के चलते सिंधिया के करीबी तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को शामिल किया गया था। ये दोनों विधायक पद से इस्तीफा देकर आए थे। जानकारों के मुताबिक संविधान की धारा 164(4) के अनुसार सिलावट और राजपूत को 6 माह के भीतर विधानसभा का सदस्य होना अनिवार्य है।
सिलावट और राजपूत ने 21 अप्रैल को मंत्री पद की शपथ ली थी, लिहाजा आगामी 21 अटूबर को 6 महीने पूरे हो जायेंगे। माना जाता है कि निर्वाचन आयोग को कम से कम एक महीने पहले विधानसभा के उपचुनाव कराने के लिए घोषणा करता है। क्योकि नामांकन से लेकर वोटिंग और मतगणना तक तमाम प्रक्रियाएं करानी होती हैं। इसमें तकरीबन एक महीने का समय लग ही जाता है। आयोग अगर इस बीच चुनाव की घोषणा नहीं करता है तो ऐसे में एक विकल्प यह हो सकता है कि संबंधित व्यक्ति 6 महीने की अवधि में अपना इस्तीफा दे और बाद में दोबारा मंत्री पद की शपथ लें।
हालांकि, विधानसभा का सदस्य चुने बिना मंत्री पद की शपथ लेने का ये प्रावधान भी केवल दो बार ही लागू हो सकता है।इस मामले में संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि बिना विधानसभा का सदस्य चुने हुए केवल छह महीने तक ही कोई मंत्री पद पर बना रह सकता है। चूंकि मध्यप्रदेश में विधान परिषद की व्यवस्था नहीं है इसलिये उपचुनाव के जरिए यदि कोई व्यति चुनकर नहीं आते हैं तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना होगा।