मुरैना। मुरैना जिले की जौरा विधानसभा सीट पर कांग्रेस विधायक बनवारी लाल शर्मा के निधन से उपचुनाव पर संकट आता नजर आ रहा है। कांग्रेस ने शर्मा के पुत्र को मैदान में उतारकर सहानुभूति की लहर चलाने की योजना बनाई थी, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। हर हाल में सीट जीतने की मंशा के चलते वह लोकप्रिय और दबंग उम्मीदवार तलाश रही है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस जौरा को लेकर सतर्क है। यह क्षेत्र ब्राह्मण बाहुल्य होने के साथ कांग्रेस का गढ़ भी है, इसलिए वह जीत की राह में कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है। शर्मा का पिछले वर्ष कैंसर के चलते निधन हो गया था। उनके पुत्र प्रदीप टिकट के दावेदार हैं और क्षेत्र में सक्रिय भी हैं, लेकिन उनके चचेरे भाई नागेश ने भी दावा ठोंक दिया है। कांग्रेस इन दोनों को लेकर असमंजस में है। इसके चलते कांग्रेस दूसरे नामों पर विचार कर रही है।
बीजेपी बदल देगी पूरा गेम
भाजपा ने अभी तक उम्मीदवार तय नहीं किया है। वह कांग्रेस की चाल देख रही है। इस क्षेत्र में सर्वाधिक प्रभाव केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का है, लेकिन अब पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी हस्तक्षेप है। बनवारी लाल के सिंधिया से संबंध रहे हैं। कांग्रेस का रुख देखते हुए सिंधिया बनवारी के बेटे को मैदान में उतारने की वकालत कर सकते हैं पर बाकी 25 क्षेत्रों में भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं के टिकट से वंचित होने के कारण तोमर समेत भाजपा के दिग्गज पार्टी के मूल कार्यकर्ता को ही मौका देने के पक्षधर हैं। भाजपा पिछले उम्मीदवार सूबेदार सिंह राजौड़ा पर फिर दांव लगा सकती है। बसपा का सोनेराम पर भरोसा BSP का इस क्षेत्र में जनाधार है। इस बार पूर्व विधायक सोनेराम कुशवाह को BSP ने उम्मीदवार घोषित किया है।
तीसरे स्थान पर थी भाजपा
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में जौरा में 20 उम्मीदवारों ने किस्मत आजमाई थी। वोटों का बिखराव भी खूब हुआ। तब कांग्रेस के टिकट पर शर्मा जौरा में पहली बार चुनाव जीते और उन्हें बसपा ने कड़ी टक्कर दी थी। शर्मा को 56,187 मत मिले, जबकि बपसा के मनीराम धाकड़ को 40,611 मत मिले। भाजपा के सूबेदार सिंह राजौड़ा को 37,639 मत पाकर संतोष करना पड़ा। यहां महान दल के अतर सिंह गुर्जर ने 17,139 मत पाकर भाजपा की सर्वाधिक क्षति की थी।