स्वामी प्रेमानंद जी महाराज का कहना है कि माता-पिता के कर्मों का फल उनकी संतान को भी भुगतना पड़ता है। यह अवधारणा सनातन धर्म में गहरी जड़ें रखती है, जिसमें माता-पिता को संतान का पहला गुरु माना जाता है। स्वामी जी के अनुसार, जैसे माता-पिता अपने बच्चों को जन्म, संस्कार, संपत्ति, और धन दौलत देते हैं, वैसे ही वे अपने कर्मों का फल भी संतान को सौंपते हैं।
स्वामी प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि यदि माता-पिता के कर्म अच्छे होते हैं, तो उनकी संतान को अच्छे संस्कार मिलते हैं। दूसरी ओर, यदि माता-पिता के कर्म बुरे होते हैं, तो उनकी संतान को जीवन में कष्ट भोगना पड़ता है। इसलिए, स्वामी जी का संदेश है कि यदि माता-पिता अपने बच्चों के सुखमय जीवन की कामना करते हैं, तो उन्हें अपने कर्मों को पवित्र और सही रखना चाहिए, जिससे न केवल उनका जीवन सुखी रहेगा, बल्कि उनकी संतान का भी कल्याण होगा।
स्वामी प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन के एक प्रसिद्ध संत हैं, जिनका जन्म कानपुर में हुआ था। वे भगवान शिव के भक्त हैं और काशी में रहकर सत्संग करते हैं। उनका आध्यात्मिक जीवन 13 साल की उम्र में शुरू हुआ था, जब उन्होंने अपने गुरु श्री गौरंगी शरण जी महाराज के सानिध्य में आध्यात्म की दिशा में कदम बढ़ाया। स्वामी जी के सत्संग और शिक्षाओं को सोशल मीडिया पर उनके अनुयायी बड़े श्रद्धा और रुचि से सुनते हैं।