भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्षों के चयन में सिंगल नाम पर असहमति और उलझन के बीच दिल्ली में बड़ा मंथन जारी है। सूत्रों के अनुसार, पार्टी हाईकमान के सामने दो फॉर्मूले रखे गए हैं, जिनमें से किसी एक को लागू किया जाएगा। इन फॉर्मूलों पर चर्चा के बाद संभावना जताई जा रही है कि सिंगल नाम वाले जिलों की पहली सूची जल्द जारी की जाएगी, लेकिन पूरी सूची पर निर्णय अभी लंबित है।
पहला फॉर्मूला: केवल सिंगल नाम तय जिलों की सूची जारी की जाए
पहला फॉर्मूला यह है कि उन जिलों की सूची सबसे पहले जारी की जाए, जहां सिंगल नाम तय हो चुका है। सूत्रों के अनुसार प्रदेश के लगभग तीन दर्जन जिलों में जिलाध्यक्ष का नाम पहले ही तय हो चुका है। ऐसे जिलों की सूची को आज रात तक जारी किया जा सकता है। यह एक कदम होगा, ताकि जिन जिलों में कोई विवाद नहीं है, वहां के नाम जल्दी घोषित किए जा सकें और पार्टी के अन्य कार्यकर्ताओं को भी अपनी दिशा मिल सके।
दूसरा फॉर्मूला: पूरी सूची पर होल्ड
यदि पहले फॉर्मूले पर सहमति नहीं बनती है, तो दूसरा फॉर्मूला लागू किया जाएगा। इसके अनुसार पूरे प्रदेश की जिलाध्यक्षों की सूची को कुछ समय के लिए होल्ड कर दिया जाएगा। इस दौरान पार्टी हाईकमान उन जिलों के बड़े नेताओं से बातचीत करेगा, जहां सिंगल नाम को लेकर असहमति है और उन पर सहमति बनाने की कोशिश करेगा। इसके बाद एक साथ पूरी सूची जारी की जाएगी, जिससे पार्टी में कोई असहमति न हो और एक सामूहिक निर्णय लिया जा सके।
दिल्ली में मंथन जारी…
सूत्रों के अनुसार, दिल्ली में राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष के साथ मध्य प्रदेश बीजेपी के नेताओं की दो बार बैठक हो चुकी है, लेकिन अभी तक जिलाध्यक्ष के नाम तय नहीं हो पाए हैं। प्रदेश के नेताओं के बीच संवाद और राय-मशविरा जारी है और पार्टी हाईकमान असहमति वाले जिलों में एक-एक करके बात कर रहा है। पार्टी का प्रयास है कि हर जिले में सिंगल नाम पर सहमति बनी हो, ताकि सूची में कोई विवाद न हो।
अगर जल्दी ही असहमति वाले जिलों में सहमति बनती है, तो पार्टी पूरी सूची एक साथ जारी कर सकती है। लेकिन यदि यह प्रक्रिया लंबी होती है, तो पहले नाम तय जिलों की सूची जारी करने का निर्णय लिया जा सकता है। फिलहाल बीजेपी के जिलाध्यक्षों के चयन को लेकर मंथन जारी है और पार्टी हाईकमान के निर्णय का इंतजार किया जा रहा है। पार्टी के नेताओं का मानना है कि जिलाध्यक्षों के चयन में कोई भी गलती पार्टी के भविष्य के लिए नुकसानदेह हो सकती है, इसलिए इस निर्णय को बहुत सोच-समझकर लिया जा रहा है।