इंदौर। जीवन और मृत्यु भगवान के हाथ में है। डाक्टर अंतिम सांस तक मरीज की जान बचाने की कोशिश करते हैं लेकिन कुछ असामाजिक तत्व डाक्टरों का महत्व नहीं समझते। माताओं, बहनों का सम्मान नहीं करने वालों के खिलाफ हम सिर्फ एफआइआर नहीं करते बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से तोड़ देते हैं। उनके घरों पर बुलडोजर चला देते हैं ताकि संदेश मिल जाए कि महिला पर अत्याचार की क्या सजा हो सकती है।मेरे प्रदेश में डाक्टर सुरक्षित हैं क्योंकि हमने उनकी सुरक्षा के लिए डाक्टर प्रोटेक्शन एक्ट लागू किया है।
यह बात मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने मंगलवार को स्त्रीरोग एवं प्रसूति विशेषज्ञों की कांफ्रेंस के उद्घाटन सत्र में कही। वह यहां वर्चुअली शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि मातृ-मृत्यु दर को कम करना एक बड़ी चुनौती है।प्रदेश में 92 प्रतिशत प्रसव अस्पताल में हो रहे हैं। हमें इसे शत प्रतिशत तक लाना है। मुख्यमंत्री ने डाक्टरों से आव्हान किया कि वे कांफ्रेंस से निकलने वाले निष्कर्ष शासन से साझा करें ताकि स्वास्थ्य योजनाएं बनाने में सुविधा हो।
पचास प्रतिशत जनसंख्या के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी स्त्री रोग विशेषज्ञों पर है। सन 2000 तक सिर्फ 28 प्रतिशत प्रसव अस्पताल में होते थे। 2005 में जननी सुरक्षा योजना लागू होने के बाद स्थिति सुधरी और 2015 तक 85 प्रतिशत तक प्रसव अस्पताल में होने लगे। मातृ-मृत्यु दर कम करने के लिए संसाधनों में बदलाव की जरूरत है। यह बात अहमदाबाद से आए डा.अल्पेश गांधी ने कही। उन्होंने कहा कि 2000 तक एक लाख प्रसव के दौरान 165 महिलाओं की मौत हो जाती थी। 2012 तक यह आंकड़ा कम होकर 103 तक पहुंचा। 2030 तक हमें इस आंकड़े को प्रति एक लाख प्रसव पर 67 तक ले जाना है।
लप्रोस्कोपी को लेकर अब भी जागरूकता की कमी है। यही वजह है कि बेहतर परिणाम देने के बावजूद देश में 90 प्रतिशत मामलों में ओपन सर्जरी की जाती है। यह बात चैन्नई से आए नेशनल एंडोस्कोपी कमेटी चेयरमैन डा. सुभाष माल्या ने कही। 80 के दशक में जब लेप्रोस्कोपी की शुरुआत हुई थी तब से अब तक तकनीक में काफी परिवर्तन आ गया है। बच्चेदानी या अंडाशय में गठान या बच्चेदानी निकालने जैसी सर्जरी लेप्रोस्कोपी के जरिये संभव है।जयपुर की डा. लीला व्यास ने कहा कि डाक्टरों को कातिल कहने वालों को सजा मिलना चाहिए। कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हमें डाक्टरों की सुरक्षा का मुद्दा उठाना चाहिए। कांफ्रेंस के तीसरे दिन बुधवार को स्वास्थ्यकर्मियों का सम्मान,महिलाओं और डाक्टरों के खिलाफ होने वाली हिंसा के खिलाफ जागरूकता लाने के लिए ”धीरा” नामक आयोजन किया जायेगा, रैली भी निकाली जाएगीलेप्रोस्कोपी को लेकर अब भी जागरूकता की कमी है। यही वजह है कि बेहतर परिणाम देने के बावजूद देश में 90 प्रतिशत मामलों में ओपन सर्जरी की जाती है। यह बात चैन्नई से आए नेशनल एंडोस्कोपी कमेटी चेयरमैन डा. सुभाष माल्या ने कही। 80 के दशक में जब लेप्रोस्कोपी की शुरुआत हुई थी तब से अब तक तकनीक में काफी परिवर्तन आ गया है। बच्चेदानी या अंडाशय में गठान या बच्चेदानी निकालने जैसी सर्जरी लेप्रोस्कोपी के जरिये संभव है।जयपुर की डा. लीला व्यास ने कहा कि डाक्टरों को कातिल कहने वालों को सजा मिलना चाहिए। कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हमें डाक्टरों की सुरक्षा का मुद्दा उठाना चाहिए। कांफ्रेंस के तीसरे दिन बुधवार को स्वास्थ्यकर्मियों का सम्मान,महिलाओं और डाक्टरों के खिलाफ होने वाली हिंसा के खिलाफ जागरूकता लाने के लिए ”धीरा” नामक आयोजन किया जायेगा, रैली भी निकाली जाएगी