भोपाल। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के समर्थन के बिना नहीं बन सकती है। जब तक हमें इनका समर्थन मिला, सरकार बनी। भाजपा ने हमेशा आदिवासियों का शोषण किया है और अब तो वनवासी कहकर इनकी पहचान समाप्त करने का षड्यंत्र कर रहे हैं। भाजपा के विरुद्ध आदिवासियों को विद्रोह करना होगा, जैसा टंट्या मामा ने शोषण करने के विरुद्ध किया था।
यह बात पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने बुधवार को आदिवासी विकास परिषद की बैठक में कही। वहीं, पूर्व मंत्री उमंग सिंघार ने कहा कि 122 सीटों पर प्रत्याशी को हराने-जिताने की क्षमता आदिवासी रखते हैं। उसे पर्याप्त हिस्सेदारी मिलनी चाहिए।
प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में हुई बैठक में दिग्विजय सिंह ने कहा कि भाजपा ने जनजातीय नायकों की मूर्ति पर माला पहनाने और द्रौपदी मुर्मु को राष्ट्रपति बनाने के अलावा कुछ नहीं किया। आज तक इन वर्गों के हित में कोई नीति नहीं बनाई। वनाधिकार के पट्टे निरस्त करने का अभियान चलाया। आदिवासी यदि सजग हो गया तो भाजपा की सरकार बन ही नहीं सकती है, इसलिए कैसे वोट कटे, इसकी उधेड़बुन में लगे हैं। इनके पास पैसे की कोई कमी नहीं है। प्रदेश में सौ सीटें ऐसी हैं, जहां अनुसूचित जनजाति के 50 हजार से ज्यादा वोट हैं।
वहीं, पूर्व मंत्री उमंग सिंघार ने कहा कि राज्य की सत्ता की चाबी आदिवासियों के हाथों में हैं, इसलिए हम चाहते हैं कि हमारी हिस्सेदारी भी जनसंख्या के आधार पर होनी चाहिए। आदिवासी का प्रभाव 122 सीटों पर है। आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ने में हम पीछे नहीं रहेंगे। कार्यक्रम में परिषद अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया, पार्टी विधायक और संगठन पदाधिकारी उपस्थित थे।
दिग्विजय सिंह ने कहा कि बैगा, भारिया और सहरिया को एक हजार रुपये प्रतिमाह देने का निर्णय यूपीए सरकार का था। 2017 तक भाजपा सरकार इसे रोके रही और चुनाव के पहले लागू किया। दुर्भाग्य से हमारी सरकार में भाजपा सरकार के अधिकारी बैठे थे, वे राशि देना टालते रहे। मंत्री कहते रहे पर हम वो पैसा जारी नहीं कर पाए। शिवराज सरकार आई और राशि जारी कर दी। इसका हमें नुकसान हुआ।
कांग्रेस के प्रभारी महासचिव जयप्रकाश अग्रवाल से कहा कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने महिलाओं को डेढ़ हजार रुपये महीना देने की घोषणा की है पर सहरिया, बैगा और भारिया को ढाई हजार रुपये दिए जाने चाहिए। हमारे वचन पत्र में सरकारी खरीदी में अनुसूचित जाति-जनजाति का अधिकार और झाबुआ, बड़वानी, मंडला और डिंडौरी में छठवीं अनुसूची लागू किए जाने की बात होनी चाहिए।