ग्वालियर। कोरोना की दूसरी लहर में लोग संक्रमित हुए तो डाक्टरों ने शरीर में विटामिन-सी के स्रोत वाले फल मौसमी, संतरा खाने की सलाह दी। इसके बाद बाजार में मौसमी की डिमांड़ बढ़ गई, लेकिन उसकी आपूर्ति नहीं हो सकी। नतीजा पिछले साल 50 रुपये किलो में बिकने वाली मौसमी का भाव इस बार 120 से 150 रुपये किलो तक पहुंच गया। थोक विक्रेताओ का कहना है कि मौसमी की महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से आवक ही नहीं है। जानकार बताते हैं कि उत्पादक राज्यों में मौसम चक्र प्रभावित होने से मौसमी का उत्पादन 50 फीसद से भी कम हुआ। इस वजह से दाम बढ़ गए हैं।
थोक विक्रेता प्रहलाद अहूजा का कहना है कि पिछले वर्ष आवक अच्छी थी तो तीन हजार रुपये क्विंटल में मौसमी आई। खेरिज भाव भी 50 रुपये किलो तक रहा था। जब आवक और बढ़ी तो दाम 20 से 30 रुपये किलो तक आ गए थे, लेकिन इस बार आवक न होने से दाम तीन गुना से अधिक हो गए। अप्रैल मई में मौसमी का थोक भाव 10 हजार से अधिक था। इस वक्त आठ हजार रुपये प्रति क्विंटल है। अभी मौसमी का भाव 120 से 150 रुपये किलो चल रहा। अप्रैल-मई में 200 रुपये प्रति किलो तक बिक चुकी है। मौसमी पर आई महंगाई के कारण सड़कों से जूस के ठेले भी गायब हो गए हैं।
थोक विक्रेताओं का कहना है कि पिछली बार हर दिन मौसमी की एक या दो गाड़ी हैदराबाद से आती थी। पर इस बार सप्ताह में एक गाड़ी मौसमी ही आ पा रही है। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि इस साल मौसमी की फसल पर मौसम की मार पड़ी है। जनवरी में निर्सग तूफान आने से महाराष्ट्र में मौसमी की फसल खराब हुई तो तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में पैदा होने वाली मौसमी बिना मौसम की बारिश और सूखे से प्रभावित हुई। इस स्थिति का मौसमी पर 50 फीसद तक प्रभाव पड़ा। महाराष्ट्र से आने वाली मौसमी इंदौर तक पहुंचती है, जबकि ग्वालियर में आंध्र प्रदेश के हैदराबाद से खट्टी-मीठी मौसमी आती है।
ग्वालियर में मौसमी आंध्र प्रदेश से आती है। इस बार मौसमी की फसल खराब होने के कारण आवक कम रही । कोरोना के चलते डिमांड बढ़ी। इस कारण से मौसमी के दाम भी बढ़े। अगले माह आवक बढ़ने से दाम कम होने की संभावना है।