भोपाल। मध्य प्रदेश में कागजी कामकाज की प्रधानता एक बार फिर उजागर हुई है। सरकार ने पिछले 10 वर्षों में कई बार ई-ऑफिस सिस्टम को लागू करने की कोशिश की, लेकिन मंत्रियों और कर्मचारियों को इसकी ट्रेनिंग ही नहीं दी गई। नतीजतन, ई-ऑफिस योजना महज कागजों तक सिमट कर रह गई है। 2017 और 2018 में शिवराज सरकार के दौरान शुरू हुए इस सिस्टम को उम्मीद थी कि यह सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाएगा और भ्रष्टाचार पर लगाम कसेगा, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। बाद में आई कमलनाथ सरकार और फिर शिवराज सरकार की वापसी के बाद भी इस दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई।
ई-ऑफिस की शुरुआत और असफलता की कहानी
ई-ऑफिस को तीन बार गंभीरता से लागू करने की कोशिश की गई। पहली बार 2007-08 और दूसरी बार 2017-18 में शिवराज सरकार ने इसे लागू करने के प्रयास किए। इस दौरान मंत्रियों और उनके कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी गई थी, लेकिन कुछ मंत्रियों ने इसे नजरअंदाज किया। 2019 में कमलनाथ सरकार ने इसे जिलों तक विस्तार देने का लक्ष्य रखा, लेकिन मंत्री और उनके कर्मचारी इस ट्रेनिंग में रुचि नहीं दिखा पाए।
2020 में शिवराज सरकार की वापसी के बाद ई-ऑफिस पर ध्यान नहीं दिया गया, और 2023 में बनी नई सरकार में भी यह प्रणाली हाशिये पर है। नतीजा यह हुआ कि मैन्युअल कामकाज फिर से प्राथमिकता में आ गया है।
मौजूदा हालात: सिर्फ रस्म अदायगी
वर्तमान में मंत्रालय और अन्य विभागों में ई-फाइल सिस्टम लागू तो है, लेकिन ज्यादातर जगहों पर सिर्फ मैन्युअल फाइलें तैयार की जा रही हैं, जिन्हें बाद में स्कैन कर ई-ऑफिस में अपलोड कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी बनी रहती है। मंत्रालय के सीएमओ, सीएस सचिवालय और जीएडी जैसे विभाग, जो कभी 90% तक ई-वर्किंग पर आ चुके थे, अब मैन्युअल कामकाज में लौट चुके हैं।
ई-वर्किंग का अभाव और भ्रष्टाचार
ई-वर्किंग सिस्टम लागू न होने का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि सरकारी कामकाज में पारदर्शिता की कमी बनी रहती है, जिससे भ्रष्टाचार के मामले बढ़ सकते हैं। ई-वर्किंग से न केवल समय की बचत होती, बल्कि दस्तावेज़ भी सुरक्षित रहते। राज्य के सतपुड़ा और विंध्याचल भवनों में आग लगने की घटनाओं में बड़ी संख्या में सरकारी दस्तावेज़ नष्ट हो गए। अगर ई-वर्किंग सिस्टम पूरी तरह से लागू होता, तो इस तरह के नुकसान से बचा जा सकता था।
कर्मचारियों की उदासीनता
ई-ऑफिस सिस्टम के तहत स्कैनिंग, फाइलें अपलोड करना और डाक को ई-फॉर्मेट में भेजने जैसी प्रक्रियाओं के लिए कर्मचारियों और अधिकारियों को प्रशिक्षित नहीं किया गया। इस कारण इस प्रणाली को लेकर उदासीनता बनी हुई है, और कामकाज में देरी हो रही है।
ई-ऑफिस का मकसद था कि सरकारी कामकाज में तेजी आए, पारदर्शिता बढ़े और भ्रष्टाचार कम हो, लेकिन बिना उचित ट्रेनिंग और सिस्टम को सही तरीके से लागू किए बिना यह योजना विफल साबित हो रही है। यह स्पष्ट है कि सरकार को ई-वर्किंग प्रणाली को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए गंभीर कदम उठाने की जरूरत है, ताकि राज्य में सरकारी कामकाज में सुधार हो सके।