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शिक्षा व्यवस्था की पोल: मैडम ने किराए पर लिया कमरा, खोल दिया सरकारी स्कूल… एक भवन तक नहीं बनवा पाई सरकार

 

जबलपुर। मध्य प्रदेश की सरकार शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और बेहतर सुविधाओं के दावे लगातार करती रही है, लेकिन जबलपुर में इसकी हकीकत उलट है। जबलपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित एक सरकारी स्कूल की स्थिति ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर कर दिया है। जहां एक सरकारी स्कूल की पढ़ाई किराए के भवन में चल रही है, जबकि उसका स्थायी भवन अभी तक निर्माणाधीन है। इस स्थिति से न केवल बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है, बल्कि प्रदेश सरकार के शिक्षा सुधार के दावे भी सवालों के घेरे में हैं।

जर्जर भवन की जगह गाय-भैंस बांधने का स्थल…

दरअसल, शहपुरा विकासखंड के सरकारी स्कूल का भवन जर्जर हो चुका था और उसे तोड़ने के बाद नया भवन बनने की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हो सकी। नए भवन की मंजूरी अभी तक नहीं मिल पाई है और विभागीय अधिकारियों का कहना है कि जैसे ही आदेश मिलेगा, निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा। इस बीच पुराने भवन के स्थान पर गाय-भैंस बांधने का स्थल तैयार हो गया है।

महिला शिक्षिका पहल… वेतन से दिया किराया

इस कठिन परिस्थिति में स्कूल में पदस्थ महिला शिक्षक बृजनंदनी सेन ने एक पहल की है। उन्होंने अपने वेतन से हर महीने दो हजार रुपये का किराया देकर गांव में एक कमरे का भवन किराए पर लिया, जिसमें स्कूल का संचालन शुरू किया गया है। इस पहल से बच्चों की पढ़ाई न केवल जारी रही, बल्कि उन्हें एक सुरक्षित और स्थिर वातावरण भी मिला। बृजनंदनी सेन ने बताया कि पहले स्कूल पेड़ के नीचे चल रहा था, जहां जीव जंतु और मौसम की परेशानियों से बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि बच्चों को उच्च शिक्षा मिल सके। अगर हमें स्कूल भवन मिल जाए, तो हम और भी बेहतर शिक्षा प्रदान कर सकते हैं।

हालांकि, बृजनंदनी सेन की पहल सराहनीय है, लेकिन सरकारी विभाग की निष्क्रियता ने स्थिति को गंभीर बना दिया है। शिक्षा सुधार के लिए सरकारी स्तर पर कई दावे किए गए हैं, लेकिन स्थिति यह दिखाती है कि सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन किस हद तक विफल हो सकता है। किराए के भवन में बच्चों की शिक्षा जारी रखना एक ओर जहां बृजनंदनी सेन की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह सरकार की शिक्षा व्यवस्था की विफलता का प्रतीक भी है। इस स्थिति ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जब तक सरकारी विभाग इस मुद्दे पर गंभीरता से कार्रवाई नहीं करेंगे, तब तक बच्चों को इसी अस्थिर स्थिति में शिक्षा प्राप्त करनी होगी।

 

 

 

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