भोपाल: प्रदेश के अधिकारी और कर्मचारी पिछले दो साल से तबादलों पर लगी पाबंदी हटने का इंतजार कर रहे हैं। नया शिक्षण सत्र शुरू हुए दो महीने हो चुके हैं, लेकिन तबादलों की रोकथाम अभी भी जारी है, जिससे हजारों कर्मचारी परेशान हैं। वे अब स्थानांतरण के लिए मंत्रियों, विधायकों और मंत्रालय में अधिकारियों के चक्कर लगा रहे हैं।
मध्य प्रदेश में नई सरकार बने करीब 8 महीने हो गए हैं, लेकिन अभी तक नई ट्रांसफर पॉलिसी को मंजूरी नहीं मिल पाई है, इसलिए तबादलों पर से प्रतिबंध भी नहीं हटा है। आमतौर पर मई-जून में तबादलों पर से प्रतिबंध हटा दिया जाता है, लेकिन इस बार विधानसभा और लोकसभा चुनाव के कारण नई ट्रांसफर पॉलिसी लटक गई है।
सूत्रों के अनुसार, सरकार नई ट्रांसफर पॉलिसी लाने के बजाय मुख्यमंत्री समन्वय के माध्यम से तबादले करने पर विचार कर रही है। लोकसभा चुनाव के बाद, जनप्रतिनिधियों की अपेक्षा है कि वे अपने क्षेत्र में अधिकारियों की नियुक्तियां करवा सकें, ताकि काम में समन्वय बने रहे। कुछ मंत्री भी अपने हिसाब से तबादलों की अनुमति मांग रहे हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव की मतदाता सूची तैयार करने के चलते, कलेक्टर, अपर कलेक्टर, तहसीलदार, शिक्षक और पटवारी के तबादलों पर रोक लगी थी। अब, जिला स्तर पर तबादले संभव हो सकते हैं।
तबादले इस तरह किए जाएंगे:
- जिलों के भीतर तबादले प्रभारी मंत्रियों की अनुमति से होंगे।
- प्रथम श्रेणी के अधिकारियों के तबादले मुख्यमंत्री की मंजूरी से होंगे।
- द्वितीय और तृतीय श्रेणी के अधिकारियों के तबादले विभागीय मंत्री और जिले के कलेक्टर की अनुमति से होंगे।
मप्र में अधिकारियों और कर्मचारियों को दो साल से तबादलों पर लगी पाबंदी से परेशानी हो रही है। एक महीने से तबादलों की अनुमति मिलने की अफवाहें आ रही हैं, लेकिन सरकार ने अभी तक नई ट्रांसफर पॉलिसी को मंजूरी नहीं दी है। तृतीय श्रेणी कर्मचारी संघ के प्रदेश सचिव ने मांग की है कि स्कूल और कॉलेजों में एडमिशन से पहले तबादलों की रोकथाम हटा दी जाए और एक स्पष्ट नीति बनाई जाए।
सरकार एक-एक करके जिलों में कलेक्टरों की नियुक्ति कर रही है। पिछले डेढ़ महीने में 2015 बैच के तीन वरिष्ठ अधिकारियों को कलेक्टर बनाया गया है। आने वाले दिनों में और भी कलेक्टरों की नियुक्ति की जाएगी। नई ट्रांसफर पॉलिसी में कहा गया है कि किसी भी संवर्ग में 20 प्रतिशत से अधिक तबादले नहीं किए जाएंगे।